यह कैसा विस्थापन.. साहब
आखिर हम भी इंसान हैं...
विस्थापितों ने किया कलेक्ट्रेट कार्यालय का घेराव
सरकारी वादे असल जिंदगी में कितने कारगर सिद्ध होते हैं इस बात का अंदाजा लगाना हो तो तिलहरी के उस विस्थापित स्थान का चक्कर लगा लीजिए जहां पर शहर से विस्थापित किए गए सैकड़ों परिवारों को रहने के लिए आश्रय दिया गया है और उसके बाद आप खुद ब खुद समझ जाएंगे की वादे तो सिर्फ... वादे ही होते हैं।
यह हम नहीं कह रहे बल्कि उस जगह नारकीय जीवन बिता रहे सैकड़ों परिवार के लोग खुद ब खुद आपबीती बता रहे हैं । विस्थापितों की माने तो ना तो यहां पर रहने की मूलभूत सुविधाएं हैं और ना ही पीने के पानी की व्यवस्था और तो और मौसम की मार ने इन विस्थापितों की मुश्किलों में चार चांद लगा दिए हैं। लेकिन सहने की भी कोई सीमा होती है लिहाजा जब पानी सर से ऊपर जाने लगा तो इन सैकड़ों परिवार के लोगों ने अपनी दुर्दशा से निजात पाने कलेक्ट्रेट कार्यालय का घेराव किया और जिम्मेदारों को अपनी वर्तमान स्थिति से अवगत कराते हुए प्रशासन द्वारा किए गए वादों की याद दिलाई।
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कहां का है मामला..??
क्या है... पूरी कहानी...???
विस्थापितों के दर्द और प्रशासन की वादाखिलाफी को उजागर करने वाली यह दास्तान मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले से सामने आई है जहां सैकड़ों विस्थापित परिवार एकजुट होकर कलेक्ट्रेट कार्यालय पहुंचे और जिम्मेदारों को अपनी दुर्दशा से अवगत कराया। आपको बता दें कि आज से करीब तीन साल पहले जबलपुर जिले के मदनमहल पहाड़ी क्षेत्र मैं रहने वाले सैकड़ों परिवारों को विस्थापन के नाम पर शहर से दूर शहरी क्षेत्र में बसाया गया था। हालांकि शुरुआती दौर पर इस विस्थापन की कार्यवाही का पुरजोर विरोध हुआ लेकिन बाद में विस्थापन करते समय जिला प्रशासन ने सैकड़ों परिवार से यह वादा किया था कि उन्हें और उनके बच्चों को वह तमाम सुविधाएं दी जाएंगी जोकि उन्हें इस क्षेत्र में मिल रही थी। और इसी आश्वासन के सहारे सैकड़ों लोग तिलहरी में जाकर बस गए और फिर इंतजार करने लगे कि कब उन्हें सड़क पानी छत और अन्य मूलभूत सुविधाएं दी जाएंगी। इंतजार करते-करते 3 साल बीत गए लेकिन प्रशासन ने आज तलक इन विस्थापितों की सुध नहीं ली।
जिम्मेदारों के प्रति फूटा विस्थापितों का गुस्सा...
गौरतलब हो कि विस्थापन से पूर्व जिला प्रशासन ने विस्थापित परिवारों को यह आश्वासन दिया था कि चयनित स्थान तिलहरी में जल्द से जल्द रहवास की तमाम मूलभूत सुविधाओं को मुहैया कराया जाएगा लेकिन जब 3 साल बीत जाने के बावजूद भी जिला प्रशासन नींद से नहीं जागा तो विस्थापित परिवारों का गुस्सा फूट पड़ा और फिर उन्होंने एकजुट होकर जिम्मेदारों को अपनी दुर्दशा से अवगत कराने कलेक्ट्रेट कार्यालय का घेराव किया। विस्थापितों ने अपना दर्द बयां करते हुए जिला प्रशासन के खिलाफ जमकर नारेबाजी की इस दौरान पुलिस प्रशासन के आला अधिकारी लगातार विस्थापितों को समझाइश देते रहे लेकिन विस्थापितों ने किसी की एक ना सुनी और जिला प्रशासन हाय-हाय के नारों से सारा कलेक्ट्रेट गूंज उठा।
नर्क से बदतर जिंदगी जीने को है मजबूर विस्थापित परिवार
मदन महल पहाड़ी से तिलहरी में विस्थापित किए गए सैकड़ों परिवार बीते 3 साल से नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं और इधर जिला प्रशासन जानबूझकर इन परिवारों की अनदेखी कर रहा है विस्थापितों की माने तो जिला प्रशासन ने विस्थापन प्रक्रिया के समय हुई हंगामे की स्थिति को देखते हुए यह वादा किया था कि उन्हें नवीन विस्थापित जगह तिलहरी में मकान बना कर दिया जाएगा इसके साथ साथ एसबी राजस्थान में सड़क और बच्चों के स्कूल का भी इंतजाम किया जाएगा लेकिन साल दर साल बीतने के बावजूद भी प्रशासन ने इस ओर कोई कदम नहीं उठाया और हालात जस के तस हैं विस्थापितों ने जानकारी देते हुए बताया कि उन्हें जिस जगह पर रहने को जगह दी गई है वहां ना तो सड़क है और ना ही रहने को छत इतना ही नहीं यहां बच्चों के लिए स्कूल का भी कोई इंतजाम नहीं है खास बात तो यह है कि यहां शासकीय उचित मूल्य की दुकान पर राशन भी नहीं मिलता चारों ओर खुला इलाका है इसलिए 24 घंटे जानवरों का खतरा बना रहता है और इन सबके बीच ठंडी गर्मी और बरसात की मार झेलते झेलते 3 साल बीत चुके हैं और विस्थापित परिवार इस आस में सारे दुख दर्द झेलते रहे कि आज नहीं तो कल प्रशासन उनका दर्द समझेगा और उन्हें सुविधा मुहैया कराएगा।
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इलाज की व्यवस्था ना होने से हो चुकी है 12 मौतें
तिलहरी के विस्थापन क्षेत्र में अव्यवस्थाओं का चहू और अंबार है। रहवासी इलाके में जो मुख्य मूलभूत सुविधाएं होनी चाहिए वह सभी नदारद हैं प्राप्त जानकारी के अनुसार जिस तिलहरी क्षेत्र में जिला प्रशासन ने मदन महल पहाड़ी में रहने वाले लोगों को बसाया है वहां पर अभी तक करीब 12 लोगों की मौत हो चुकी है विस्थापितों की मानें तो इन मौतों का मुख्य कारण समय रहते प्राथमिक इलाज ना मिल पाना है। बावजूद इसके जिला प्रशासन जानबूझकर सैकड़ों विस्थापित परिवारों की अनदेखी कर रहा है।
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