इधर स्ट्रेचर घटीटता रहा पत्रकार..
उधर सीएम के सामने खुद की पीठ थपथपाता रहा जिला स्वास्थ्य विभाग...
कोरोना संक्रमण का यह दूसरा प्रहार आम आदमी से लेकर कई बड़ी हस्तियों तक के लिए मुसीबत का सबब बनता जा रहा है। यही कारण है की मध्य प्रदेश सरकार कोरोना समीक्षा बैठक के जरिए प्रदेशभर के जिम्मेदारों से उनके जिलों की स्थिति का जायजा ले रही है। लेकिन इन वर्चुअल बैठकों में किस तरह झूठ परोसा जा रहा है इसका अंदाजा आप खुद इस घटना से लगा सकते हैं जहां एक ओर प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ जिला अस्पताल में सुविधाओं के अभाव में खुद ही अपने परिजन को स्ट्रेचर पर लिटा कर स्ट्रेचर घसीटते हुए एक वार्ड से दूसरे वार्ड भटक रहा था। वहीं दूसरी ओर जिला अस्पताल के जिम्मेदार सीएम के सामने वर्चुअल बैठक के माध्यम से जिला अस्पताल की स्वास्थ्य सेवाओं को तंदुरुस्त बताते हुए खुद की पीठ थपथपा रहे थे।
कहां का है मामला क्या है पूरी घटना
मामला मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले का है जहां 2 अप्रैल की दोपहर को शहर के एक जाने पहचाने पत्रकार विलोक पाठक के पिताजी की तबीयत अचानक बिगड़ गई आनन-फानन में पत्रकार विलोक पाठक एंबुलेंस के माध्यम से अपने पिताजी को लेकर जिला अस्पताल विक्टोरिया पहुंचे । लेकिन उसके बाद उनके साथ जो हुआ उसे सोच कर ही आम आदमी अपनी स्थिति का अंदाजा बखूबी लगा सकता है।
खुद स्ट्रेचर घसीटने को मजबूर हुआ पत्रकार.. नहीं पहुंचा कोई वार्डबॉय..
अत्यंत गंभीर अवस्था में अपने पिता को लेकर जिला अस्पताल पहुंचे पत्रकार विलोक पाठक ने अति शीघ्र अपने पिता को इमरजेंसी वार्ड में दाखिल कराने का अनुरोध किया। लेकिन उन्हें एंबुलेंस से इमरजेंसी वार्ड तक ले जाने के लिए स्ट्रेचर की आवश्यकता थी उन्होंने यहां वहां नजर दौड़ाई तो वहां कोई स्टाफ नहीं दिखा बाद में वार्ड के बाहर एक खाली स्ट्रेचर दिखाई दिया, लेकिन उसे चलाने वाला वार्ड बॉय नदारद था लिहाजा उन्होंने वार्ड के नर्स से लेकर डॉक्टरों तक इस बात की जानकारी मांगी कोई संतोषजनक उत्तर ना मिलने पर मजबूरन खुद पत्रकार विलोक पाठक और उनके भाई ने अपने पिता को स्ट्रेचर पर लिटाया और वार्ड तक पहुंचाया।
इमरजेंसी वार्ड में नहीं पहुंचे डॉकटर
एक महिला नर्स के भरोसे चल रहा पूरा वार्ड
अब तक जिला अस्पताल की अव्यवस्थाओं को लेकर पत्रकार विलोक पाठक काफी दुखी थे । लेकिन उनके ऊपर दुख का पहाड़ तब टूट पड़ा जब इमरजेंसी वार्ड में बहुत देर बीत जाने के बाद भी कोई भी डॉक्टर नहीं आया। इस दौरान उन्होंने मुख्य चिकित्सा स्वास्थ्य अधिकारी से लेकर ड्यूटी डॉक्टर तक एक-एक करके सभी को फोन लगाया । लेकिन ना तो किसी ने फोन उठाने की जहमत की और ना ही उनके पिताजी के हाल जानने की।
अब पत्रकार विलोक पाठक का धैर्य टूटने की कगार पर आ चुका था। इस दौरान उन्होंने देखा कि कुछ पत्रकार जिला अस्पताल प्रांगण में कोरोना संक्रमण को लेकर न्यूज़ बना रहे थे। लिहाजा उन्होंने उपरोक्त पत्रकारों को भी यथा स्थिति से अवगत कराया। लेकिन मामला जस का तस रहा। बाद में पत्रकार विलोक पाठक ने परिचित स्टाफ कर्मियों से संपर्क साधने का प्रयास किया।
वेंटिलेटर तो है लेकिन उसे चलाने वाला ऑपरेटर नहीं है
लगभग डेढ़ घंटे बीत जाने के बाद उनका संपर्क इमरजेंसी वार्ड के ड्यूटी डॉक्टर से हुआ । जिन्होंने पत्रकार विलोक पाठक को यह सलाह दी की उनके पिताजी को वेंटिलेटर की आवश्यकता है। लिहाजा वे अपने पिताजी को मेडिकल कॉलेज अस्पताल शिफ्ट करवा लेवे। इस दौरान विलोक पाठक ने ड्यूटी डॉक्टर से पूछा कि क्या वे जिला अस्पताल विक्टोरिया में ही वेंटिलेटर की सुविधा उपलब्ध नहीं करवा सकते। इस पर उन्हें जवाब मिला कि हमारे यहां वेंटिलेटर तो है लेकिन उसे ऑपरेट करने के लिए स्टाफ नहीं है।
यह जवाब सुनकर उन्हें इस बात का साफ साफ अंदाजा हो गया की जिला अस्पताल मैं किस तरह की स्वास्थ्य सेवाएं आम जनता को दी जा रही हैं। बहरहाल बिना किसी विवाद में पढ़ते हुए उन्होंने पुनः अपने पिताजी को स्ट्रेचर पर लिटाया और स्ट्रेचर घसीटते हुए एंबुलेंस तक जा पहुंचे। जिसके बाद उन्होंने अपने पिताजी को आगा चौक स्थित एक निजी अस्पताल में दाखिल कराया जहां उन्हें स्वास्थ्य सेवाएं दी जा रही है।
आभासी बैठक के जरिए आभासी आंकड़े देकर सीएम को कर रहे गुमराह
इस पूरी घटना के दौरान एक बात जो काफी चौंकाने वाली थी वह यह थी कि जिस दौरान जिला अस्पताल प्रांगण में एक पत्रकार अव्यवस्थाओं का दंश झेल रहा था उसी दौरान जिला अस्पताल के वरिष्ठ अधिकारी और कर्मचारी मुख्यमंत्री महोदय से वर्चुअल कॉन्फ्रेंस के जरिए जिला अस्पताल विक्टोरिया में अपनी चाक-चौबंद व्यवस्था की डींगे हांक रहे थे।
कोरोना समीक्षा बैठक के बाद मुख्यमंत्री महोदय ने यह स्पष्ट किया की जिलों की स्वास्थ्य व्यवस्थाएं काफी चुस्त और तंदुरुस्त है सभी जगह पर्याप्त वेंटीलेटर मास्क सैनिटाइजर और ऑक्सीजन उपलब्ध है लिहाजा प्रदेश की जनता को किसी भी प्रकार से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है लेकिन काश प्रदेश के मुखिया यह जान पाते की उनकी पीठ पीछे किस तरीके से झूठ परोसा जा रहा है।
यह घटना जहां एक और सरकारी अस्पतालों में व्याप्त अनियमितताओं की पोल खोलती है वहीं दूसरी ओर चाटुकार पत्रकारों और अधिकारियों की मिलीभगत से पेश किए जाने वाली प्रायोजित जानकारियों को भी उजागर करती है इस पूरी घटना ने एक बात तो साफ कर ही दी है कि यदि प्रजातंत्र के चौथे स्तंभ कहलाने वाले पत्रकार का जिला अस्पताल में यह हाल है तो फिर आम गरीब जनता कि क्या दुर्गत होती होगी......
(नोट- उपरोक्त विषय में यदि आप और भी अन्य जानकारी जुटाना चाहते हैं तो आप स्वयं भी पत्रकार विलोक पाठक से 9300100048 पर संपर्क कर जान सकते हैं)