Vikas ki kalam

जानिए कैसे हुआ "विक्रम संवत"का शुभारंभ

 जानिए कैसे हुआ "विक्रम संवत"का शुभारंभ





1. राजा विक्रमादित्य को न्यायप्रिय और अपनी प्रजा के हित को ध्यान में रखने वाले शासक के रूप में जाना जाता था। विक्रमादित्य के काल में उज्जैन सहित भारत के एक बड़े भू-भाग पर विदेशी शकों का शासन हुआ करता था। ये लोग अत्यंत क्रूर प्रवृत्ति के थे। ये अपनी प्रजा को सदैव कष्ट दिया करते थे। राजा विक्रमादित्य ने संपूर्ण भारत को शकों के अत्याचारों वाले शासन से मुक्त करके अपना शासन स्थापित किया और जनता को भय मुक्त जीवन दिया। 


2. विक्रम संवत का आरंभ 57 ईस्वी पूर्व में उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के नाम पर हुआ था। वैसे तो फाल्गुन माह के समाप्त होते ही नववर्ष प्रारंभ हो जाता है परंतु कृष्ण पक्ष बितने के बाद चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में जिस दिन सूर्योदय के समय प्रतिपदा होती है उसी दिन से नवसंवत्सर प्रारंभ होना माना जाता है। इसी दिन को भारत के अन्य हिस्सा में गुड़ी पड़वा सहित अन्य कई नामों से जाना जाता है। देश में अनेक विद्वान ऐसे हुए हैं, जो विक्रम संवत को उज्जैन के राजा विक्रमादित्य द्वारा ही प्रवर्तित मानते हैं। 

3. विक्रम संवत अनुसार विक्रमादित्य आज से 2293 वर्ष पूर्व हुए थे। ज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य भी चक्रवर्ती सम्राट थे। विक्रमादित्य का नाम विक्रम सेन था। विक्रम वेताल और सिंहासन बत्तीसी की कहानियां महान सम्राट विक्रमादित्य से ही जुड़ी हुई है। कलि काल के 3000 वर्ष बीत जाने पर 101 ईसा पूर्व सम्राट विक्रमादित्य का जन्म हुआ। उन्होंने 100 वर्ष तक राज किया। -(गीता प्रेस, गोरखपुर भविष्यपुराण, पृष्ठ 245)।

4. विक्रमादित्य अपने ज्ञान, वीरता और उदारशीलता के लिए प्रसिद्ध थे जिनके दरबार में नवरत्न रहते थे। कहा जाता है कि विक्रमादित्य बड़े पराक्रमी थे और उन्होंने शकों को परास्त किया था।

5. कहा जाता है कि मालवा में विक्रमादित्य के भाई भर्तृहरि का शासन था। भर्तृहरित के शासन काल में शको का आक्रमण बढ़ गया था। भर्तृहरि ने वैराग्य धारण कर जब राज्य त्याग दिया तो विक्रमसेन ने शासन संभाला और उन्होंने ईसा पूर्व 57-58 में सबसे पहले शको को अपने शासन क्षेत्र से बहार खदेड़ दिया। इसी की याद में उन्होंने विक्रम संवत की शुरुआत कर अपने राज्य के विस्तार का आरंभ किया। विक्रमादित्य ने भारत की भूमि को विदेशी शासकों से मुक्ति कराने के लिए एक वृहत्तर अभियान चलाया और संपूर्ण भारतवर्ष पर अपने राज्य का परचम लहरा दिया था। 

6. कल्हण की 'राजतरंगिणी' के अनुसार 14 ई. के आसपास कश्मीर में अंध्र युधिष्ठिर वंश के राजा हिरण्य के नि:संतान मर जाने पर अराजकता फैल गई थी। जिसको देखकर वहां के मंत्रियों की सलाह से उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने मातृगुप्त को कश्मीर का राज्य संभालने के लिए भेजा था। नेपाली राजवंशावली अनुसार नेपाल के राजा अंशुवर्मन के समय (ईसापूर्व पहली शताब्दी) में उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के नेपाल आने का उल्लेख मिलता है। 

एक टिप्पणी भेजें

If you want to give any suggestion related to this blog, then you must send your suggestion.

और नया पुराने