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सफरनामा : किसान आन्दोलन में सैकड़ों ने गंवाई थी जानें, पंजाब से हुई थी शुरुआत

तीन कृषि कानूनों के विरोध में शुरू हुआ किसान आंदोलन 378वें दिन खत्म हो गया है। एसकेएम ने अहम बैठक के बाद बड़ा फैसला लिया। इतने लंबे चले आंदोलन में कई उतार चढ़ाव आए। कई बार आंदोलन कमजोर पड़ता दिखा तो इसके नेताओं ने फिर से आंदोलन को संभाला। जहां आंदोलन में युवाओं का जोश दिखाई दिया वहीं बुजुर्गों के फैसलों पर युवाओं का धैर्य भी आंदोलन को इतना लंबा चलाने में सहायक रहा। आंदोलन के नेताओं में मनमुटाव भी हुए लेकिन मोर्चा फिर भी डटा रहा। संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले 26 नवंबर 2020 से आंदोलन जारी है। दिल्ली बॉर्डर पर आंदोलन का 378वें दिन समापन हुआ है। 11 तारीख को चरणबद्ध तरीके से किसान घरों की ओर चलेंगे। सरकार से आधिकारिक पत्र मिलने पर संयुक्त किसान मोर्चा की सरकार से सहमति बन गई है। आंदोलन में 700 से ज्यादा किसानों ने अपनी जान गंवाई है। जानिए आंदोलन में कब क्या हुआ

दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचने से पहले ही शुरू हो गया था आंदोलन

किसानों आंदोलन की शुरुआत किसानों के दिल्ली पहुंचने से पहले ही तब शुरू हो गई थी, जब सरकार जून के पहले सप्ताह में कोरोना काल के बीच तीन कृषि अध्यादेश लाई। इसका विरोध विपक्षी दलों के साथ-साथ किसान संगठनों ने भी शुरू कर दिया था। धीरे-धीरे पंजाब व हरियाणा में इसका विरोध तेज होता गया। पंजाब में इसके विरोध में रेल रोको आंदोलन से लेकर कई प्रकार के विरोध प्रदर्शन किए गए। किसानों ने सरकार के पूतले फूंके। अगस्त में किसानों ने जेल भरो आंदोलन किया और सैकड़ों किसानों ने गिरफ्तारियां दी। 10 अगस्त को पंजाब के किसानों ने अन्नदाता जागरण अभियान की शुरूआत की।

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10 सितंबर को हरियाणा में किसानों पर लाठीचार्ज

हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के पिपली कस्बे में दस सितंबर को किसानों ने मंडी बचाओ रैली का अल्टीमेटम दे रखा था। सरकार ने इस रैली को रोकने के लिए धारा 144 लगा दी। किसानों ने इसका विरोध किया और रैली के लिए जुटने शुरू हो गए। यहां प्रशासन ने किसानों पर लाठीचार्ज कर दिया, जिसमें कई किसान घायल हुए। इसके विरोध में किसानों ने नेशनल हाईवे जाम कर दिया।किसानों के विरोध के आगे सरकार को झुकना पड़ा और रैली के लिए इजाजत देनी पड़ी। दोपहर दो बजे मंडी में रैली की शुरूआत हुई।

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कृषि बिल बने कानून, बढ़ा विरोध

14 सितंबर, 2020 को कृषि कानून बिल लोकसभा में पेश किया गया, जो 17 सितंबर, 2020 को पास हुआ। इसके बाद देशभर में किसानों के विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। 27 सितंबर 2020 को दोनों सदनों से पास बिलों पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने हस्ताक्षर किए। इसके बाद आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून, 2020, कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून, 2020, कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून, 2020 बने।

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पंजाब के किसानों ने रेलवे ट्रैक रोके

पंजाब में किसानों ने पहले तो 24 से 26 सितंबर 2020 तक रेल रोकी उसके बाद एक अक्तूबर से कृषि कानूनों के विरोध में पंजाब के किसान संगठनों ने राशन और तंबू कनात लेकर रेलवे ट्रैक, हाईवे पर डेरा डाल दिया। इसी के साथ ही किसानों ने टोल भी फ्री करवाने शुरू कर दिए और रिलायंस स्टोरों व टावरों का विरोध किया। 2 अक्तूबर से दूसरे किसान संगठनों ने देश के अन्य राज्यों में भी प्रदर्शन किया। इस दौरान हरियाणा में भी कई जगह प्रदर्शन व विरोध चलते रहे। अक्तूबर में ही पंजाब और राजस्थान सरकार ने विधानसभा में कृषि कानूनों का विरोध किया।

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5 नवंबर 2020: भारत बंद

किसानों ने 5 नवंबर 2020 को भारत बंद का एलान किया। इस भारत बंद का व्यापक असर हरियाणा और पंजाब में ही देखने को मिला। इसके बाद पंजाब के किसान संगठनों ने देश के अन्य संगठनों से बातचीत करनी शुरू की और संयुक्त किसान मोर्चा का गठन किया। मोर्चे की पहली बैठक दिल्ली में सात नवंबर को हुई। इसमें किसानों की 9 मेंबरी कमेटी का गठन किया गया। इसके बाद दिल्ली कूच का निर्णय लिया गया।

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