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मरीज को चारपाई में लिटाकर अस्पताल पहुंचे ग्रामीण.. सरकार के ग्रामीण विकास योजनाओं की हकीकत बयां करती तस्वीर...

मरीज को चारपाई में लिटाकर अस्पताल पहुंचे ग्रामीण..
सरकार के ग्रामीण विकास योजनाओं की हकीकत बयां करती तस्वीर...



शहडोल-सोहागपुर

21वीं सदी का भारत विश्व के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ा हुआ है। पाताल की गहरी खाईयां नापने के साथ-साथ आज का भारत मंगल तक जा पहुंचा। सुई से लेकर हवाई जहाज तक वर्तमान के भारत में सब कुछ यही बन जाता है और इतना ही नहीं हम विदेशों में निर्यात कर उनकी जरूरतें भी पूरी करते हैं।

लेकिन इन सब चकाचौंध के बीच जब भी कभी कोई गरीब लाचार या जरूरतमंद अव्यवस्थाओं के अभाव में खुद को लाचार महसूस करने लगता है और ऐसे समय में जो दृश्य सामने आते हैं वह अपने आप ही आप ही सरकार की ग्राम स्वराज और  ग्रामीण विकास योजनाओं और एक उन्नतशील भारत की कलई खोल देतें है।


सरकार भले ही गांव में विकास की गंगा बहाने की बात करती हो लेकिन आज हम जिस गांव की बात करने जा रहे हैं ऐसा लगता है की या तो यह गांव भारत में नहीं है या फिर सरकार की पहुंच से इतना दूर है कि आजादी के इतने साल बीत जाने के बावजूद भी इस गांव में बिजली पानी और सड़क से लेकर अन्य मूलभूत सुविधाएं नदारद है। सरकारी दस्तावेजों में चाटुकार अधिकारियों की मिलीभगत के चलते गांव का जमकर विकास हुआ है लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर है। अव्यवस्था की यह हकीकत का खुलासा तब हुआ जब गांव के रहने वाले एक दिव्यांग बुजुर्ग की तबीयत खराब होने पर उसे अस्पताल में भर्ती कराने के लिए चारपाई में लिटा कर गांव से मुख्य मार्ग तक लाना पड़ा। सूचना देने के बावजूद भी इस गांव का एंबुलेंस से संपर्क न हो सका तो ग्रामीणों ने मोटरसाइकिल से ही बुजुर्ग को अस्पताल पहुंचाया। बुजुर्ग तो अस्पताल पहुंच गया लेकिन बुजुर्ग को अस्पताल पहुंचाने के दौरान जो दृश्य कैमरे में कैद हुए । उन दृश्यों ने सरकार के ग्राम विकास दावों की पोल खोल कर रख दी है।


कहां का है मामला क्या है पूरी कहानी


मामला मध्यप्रदेश के शहडोल जिले के सोहागपुर जनपद पंचायत का है जहां पर बंडी पंचायत के गीधाटोला गांव में अव्यवस्थाओं के अंबार के चलते एक बुजुर्ग को चारपाई में लादकर अस्पताल पहुंचाने वाली घटना सामने आई है।


दरअसल गीधाटोला निवासी 40 वर्षीय दिव्यांग ओमनारायण बैगा  की बीती रात अचानक तबियत बिगड गयी। तो सुबह गांव के युवाओं को ओमनारायण को खटिया (चारपाई) में लादकर दो किलोमीटर दूर मुख्य सड़क तक लाना पड़ा। इसके बाद मोटर साइकिल से इलाज के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बम्हौरी लेकर पहुंचे। गौरतलब हो कि गांव में एंबुलेंस नहीं पहुंच पाती है जिसका एकमात्र कारण गांव का पहुंच मार्ग है जो कि अत्यंत जर्जर है बीते कई वर्षों से ग्रामीण मार्ग को दुरुस्त कराने के लिए कई बार शिकायतें कर चुके हैं लेकिन इसके बावजूद भी अव्यवस्थाओं का कोई भी निराकरण नहीं किया गया । गांव बंडी के बैगा बाहुल्य गीधाटोला में सड़क, बिजली के साथ पेयजल की भी समस्या है। यहां शासन की आदिवासी विकास को लेकर सारी योजनाएं नदारद हैं।


लालटेन और चिमिनी के सहारे काट रहे रातों का अंधियारा 


सरकारी विकास गंगा से कोसों दूर इस आदिवासी बाहुल्य गाँव में आज भी सूरज ढलते ही लालटेन ,चिमनी,ढिबरी का सहारा लिया जाता है। यहां आज तक सड़क, बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएं भी नहीं पहुंची हैं। चिमनी या ढिबरी के सहारे ही गांव बैगा युवा या युवती स्नातक, स्नातकोत्तर या आईटीआई, पॉलिटेक्निक की पढ़ाई कर रहे है।



ग्रामीणों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, चुनाव की घोषणा होते ही चुनावी प्रत्याशी वोट के लालच में जमावड़ा लगाना शुरू कर चुके है। हर कोई हमदर्द बनकर गाँव मे क्रांति लाने की बात करने लगा है।लेकिन गांव में अभी अव्यवस्थाओ का निपटारा ही नहीं हो पाया है। दुर्दशा का दंश झेल रहे ग्रामीणों ने अब चुनावों के बहिष्कार करने का मन बना लिया है। गांव के बैगा युवाओं का कहना है कि, इस बार "विकास नहीं तो वोट नहीं" के लिए गांव के सभी आदिवासी जनों से अपील की जा रही है।

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