कोरोना जांच को लेकर कलेक्शन सेंटरों का कमाल..
चुटकी बजाकर तैयार कर देते थे RTPCR रिपोर्ट..
लेकिन कौन है पर्दे के पीछे का कलाकार जो अब तक है गुमनाम..
जबलपुर मध्यप्रदेश
कोरोना ने जैसे-जैसे अपना भयावह रूप धारण किया वैसे वैसे इस भय को भंजाने के लिए मौकापरस्त लोगों ने अपने दांव खेलने शुरू कर दिए थे। लोगों के डर का पैमाना और जरूरत के हिसाब से इसकी कीमत भी तय की जाने लगी मामला कोरोना जांच के सर्टिफिकेट से लेकर जुड़ा हुआ है। जैसे जैसे लोगों की मांग बढ़ी वैसे वैसे हर गली चौराहे और मोहल्लों में बाकायदा पैथोलॉजी लैब के कलेक्शन सेंटर धड़ल्ले से खुलने लगे। चूंकि हर दूसरा व्यक्ति कोरोना संक्रमण की चपेट से बचना चाहता था लिहाजा अनायास ही वह कलेक्शन सेंटर की ओर खिंचा चला आता था और इस बात का पूरा फायदा उठाते हुए अनाधिकृत तौर पर संचालित इन कलेक्शन सेंटरों ने आपदा काल में भी रुपयों की जमकर छपाई की। जैसे इस गड़बड़ी व गोरखधंधे की भनक स्वास्थ्य विभाग को हुई तो उन्होंने इसकी तह तक जाने के लिए एक जांच समिति का गठन किया जिन्होंने जांच में इस पूरे फर्जीवाड़े का खुलासा किया है।
मामला मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले से सामने आया है जहां कोरोना टेस्ट के नाम पर पैथोलॉजी लेब द्वारा चलाया जा रहा बड़ा गोरखधंधा उजागर हुआ है। आपको जानकर आश्चर्य होगा की यहां पर बेखौफ होकर धड़ल्ले से कोरोना टेस्टिंग और RTPCR रिपोर्ट दिए जाने का काम चल रहा था। इन पैथोलॉजी लैब द्वारा लोगों की जरूरत के अनुसार बढ़ी हुई कीमतों पर महज चंद घंटों पर RTPCR की रिपोर्ट दे दि जाती थी।
नियम और कानूनों की बात करें तो कोरोना टेस्ट RTPCR की रिपोर्ट जारी करने के लिए रजिस्टर्ड पैथोलॉजी लैब के पास बकायदा एनएबीएल NABL के सर्टिफिकेट का होना बेहद जरूरी होता है। लेकिन यह पूरा गोरखधंधा बिना एनएबीएल NABL सर्टिफिकेट के ही संचालित किया जा रहा था।
इस पूरे खेल का खुलासा स्वास्थ्य विभाग की जांच में सामने आया । स्वास्थ्य विभाग के संबंधित जांच अधिकारियों की माने तो, उनके पास लंबे समय से इस संबंध में शिकायतें आ रही थी। जांच टीम ने जांच के दौरान पाया कि, यह सभी पैथोलॉजी लैब/ कलेक्शन सेंटर अनाधिकृत तौर पर संचालित हो रहे थे।
इस पूरे गोरखधंधे में एक-दो नहीं बल्कि जिले की 62 पैथोलॉजी लैब /कलेक्शन सेंटर संदिग्ध गतिविधियों में संलिप्त पाई गई है। जांच के दौरान संदिग्ध पाए गए सभी 62 कलेक्शन सेंटरों के SRF एसआरएफ आईडी को ब्लॉक कर दिया गया है।
संजय मिश्रा संयुक्त संचालक स्वास्थ्य सेवाएं जबलपुर
कौन है पर्दे के पीछे का कलाकार जो अब तक है गुमनाम
शहर में बेधड़क चल रहे इस अवैध कारोबार में स्वास्थ्य विभाग की मिलीभगत होने से नकारा नहीं जा सकता। क्योंकि जहां बिना कागज पूरे किए चपरासी तक वार्ड के अंदर जाने नहीं देता। वहां बिना अनुमति के कुरमुत्ते की तरह कलेक्शन सेंटरों का चलना हाजमे के परे की बात है। सूत्रों की माने तो नीचे से लेकर ऊपर तक सभी का नज़राना फिक्स किया गया था।
मामले के तूल पकड़ने के बाद जैसे ही पैथोलॉजी लेब और कलेक्शन सेंटरों पर गाज गिरने की बात सामने आई। वैसे ही जिला अस्पताल के एक विभागीय कार्यालय में उथल-पुथल मच गई।
जबलपुर में अनाधिकृत रूप से संचालित पैथोलॉजी लेब कलेक्शन सेंटर वाले मामले ने जिला अस्पताल में पदस्थ एक बाबू की कार्यप्रणाली पर बड़े सवालिया निशान खड़े किए है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार जिले भर में संचालित सभी निजी अस्पताल ,निजी क्लिनिक और पैथोलॉजी सेंटर के दस्तावेज वेरिफिकेशन, पंजीयन एवं नवीनीकरण के लिए बाकायदा एक विभाग है।जहाँ इनका लेखा जोखा एकत्र किया जाता है।
लेकिन इस खुलासे के बाद अब यह बड़ा सवाल खड़ा होता है कि आखिर कैसे बिना बाबू की नज़र में आये एक दो नहीं बल्कि आधा सैकड़ा से अधिक संस्थान अनाधिकृत रूप से संचालित किए जा रहे थे। या फिर कुछ विभागीय लोगों की मिलीभगत से ही ये पूरा कारोबार संचालित हो रहा था। इतना सब कुछ हो जाने के बावजूद भी विभाग का गुप्त डिफेंसिव मोड (मामले को निपटाने वाले मास्टर माइंड लोगों का समूह) अब विभागीय दांवपेंचों का गुत्थमगुत्था तैयार कर जांच को मोड़ने का प्रयास कर रहा है।
जांच समिति को चाहिए कि वे बाहर के गुनाहगारों की जांच करने से पहले विभाग के अंदर बैठे गुनाहगारों को बेनकाब करें। क्योंकि अगर जमीन के अंदर फैली जड़ को काटे बिना सिर्फ ऊपरी खरपतवार को अलग किया तो जल्द ही फिर से ये खरपतवार उग जाएगी और आने वाले समय मे दोबारा फसल को नुकसान पहुंचाएगी।