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जानिए आखिर राजनीतिक दलों के लिए क्यों उपयोगी हो जाते है "बाबा रामदेव"

जानिए आखिर राजनीतिक दलों के लिए क्यों उपयोगी हो जाते है "बाबा रामदेव"






नई दिल्ली, 

 भले ही योग गुरु बाबा रामदेव सीधे-सीधे राजनीति से ना जुड़ें हो लेकिन कहीं ना कहीं जब भी चुनाव आते हैं उनके बयान काफी मायने रखते है। बाबा रामदेव के लाखों-करोड़ों अनुयाई हैं और यही कारण है कि राजनीति में ना होते हुए भी राजनीतिक दलों के लिए वह सदैव उपयोगी हो जाते हैं। कुल मिलाकर देखें तो बाबा रामदेव योग के
साथ-साथ व्यापार में भी हाथ आजमा रहे हैं। लेकिन कहीं ना कहीं राजनीतिक तौर पर उनकी राजनेताओं के साथ पकड़ भी मजबूत रही है। 

हरिद्वार और आसपास के इलाकों में बाबा रामदेव ने अपनी अच्छी खासी पैठ बनाई है और पतंजलि योगपीठ के जरिए लोगों को रोजगार देने के साथ-साथ उनके कल्याण के लिए भी काम करते हैं। उत्तर भारत की राजनीति में बाबा रामदेव अक्सर अपनी बयानों की वजह से सुर्खियों में आ जाते हैं। पर इस बार चुनाव
अगर उत्तराखंड में है तो जाहिर सी बात है कि उत्तराखंड बाबा रामदेव की कर्मभूमि है ऐसे में उनको लेकर कयास लगातार लगाए जाएंगे।

बाबा रामदेव की राजनीतिक दिलचस्पी किसी से छिपी नहीं है 2010 में बाबा रामदेव ने स्वाभिमान इंडिया प्राइड के नाम से एक राजनीतिक दल बनाने की घोषणा की थी और साथ ही साथ कहा था कि वह अगले राष्ट्रीयचुनाव में हर सीट पर लड़ेंगे। हालांकि बाद में उन्होंने अपने इस
प्लान को स्थगित कर दिया और विभिन्न प्रकार के आंदोलनों में शामिल होते गए। 

2014 आते- आते बाबा रामदेव पूरी तरीके से बीजेपी के समर्थन में आ गए और नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने  के लिए लगातार बयान देने लगे। मोदी के समर्थन में बाबा रामदेव योग शिविर चलाने लगे। हालांकि कुल मिलाकर देखें तो 2014 के बाद से रामदेव लगातार भाजपा और नरेंद्र मोदी के कट्टर समर्थक के रूप में उभरे हैं।

बाबा रामदेव जनलोकपाल आंदोलन में भी शामिल हुए और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। काले धन के खिलाफ बाबा रामदेव की लड़ाई अब भी जारी है और वे राष्ट्र निर्माण में प्रमुख भूमिका निभा रहे
हैं।

वे कांग्रेस सरकार पर लगातार हमलावर रहे। उत्तराखंड में जब कांग्रेस की सरकार थी तब हमने देखा किस तरीके से बाबा रामदेव के ऊपर कई प्रकार के जांच किए गए तथा पतंजलि योगपीठ के बहुत सारे उत्पादों पर भी रोक लगाई गई।

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