हम बोलेगा..
तो बोलोगे की..
बोलता है....
4 रखवालों के, साढ़े 5 पेटी का गेम.. फेल
जबलपुर शहर के 4 रखवालों ने आपस में मिलकर एक ऐसी खिचड़ी पकाई की उसकी महक मेजबान से होती हुई कप्तान के दफ्तर तक जा पहुंची फिर क्या था खिचड़ी की हांडी तो फूटी ही फूटी चारों रखवालों की शामत भी आ गई। बताया जा रहा है कि इन चारों में से एक पुराना खिलाड़ी है जो हाल ही में अपनी करतूतों के चलते अन्य विभाग में स्थानांतरित किया गया था। लेकिन पुरानी खुजली मिटी नहीं थी। लिहाजा तीन अन्य लोगों के साथ टीम बनाकर इस बार उसने एक व्यापारी को 8 पेटी की अड़ी दे दी। रखवाले जानते थे कि व्यापारी को झूठी कार्यवाही का डोज देने के बाद मलाई मिल ही जाएगी और किसी को भनक भी नहीं लगेगी।जैसे तैसे मामला साढ़े 5 पेटी में सिमट भी गया। लेकिन पंजू से लेकर पान वाले तक का पूरा घटना क्रम कप्तान साहब के सामने आ गया ।फिर क्या था चारों रखवालों को कप्तान साहब ने निलंबित करते हुए लाइन हाजिर का फरमान सुना दिया। इधर कप्तान साहब के आदेश के बाद विभाग कर रहा सीसीटीवी फुटेज का मेल..उधर 4 रखवालों के, साढ़े 5 पेटी का गेम.. फेल
पॉलिटिक्स की भेंट चढ़ी ढ़ोल वालों की लग्नहाई
चुनावों की आमद आते ही राजनेताओं से भी ज्यादा अगर किसी को खुशी हुई होगी तो वे होंगे शहर के ढ़ोल वाले। छोटे मोटे अवसरों पर बेहद कम कीमत लेकर लोगों की खुशी चौगुनी करने वाले ये लोग एक अरसे से चुनावी दंगल का इंतजार कर रहे थे। जिन्हें पता था कि चुनावी माहौल ही इनकी असली लग्नहाई साबित होगा। जहां हर मौहल्ले से महीनों तक प्रचार की रैली में इनकी बुकिंग होगी। लेकिन हाय री पॉलिटिक्स इस बार तो चुनाव आकर खड़े भी हो गए लेकिन प्रत्याशी का अता पता भी नहीं है।न पर्चे न ढ़ोल धमाका बस मोबाईल पर ही चुनावी जंग छिड़ी पड़ी है। बात साफ है जब उम्मीदवार खुद पार्टी से उम्मीद लगाए अपने नाम का इंतजार कर रहा है तो ओरों की क्या बिसात। इधर मोहल्ले की चाय की टपरी पर बैठे कल्लू ढोल वाले ने कह ही दिया..ए बार नेताओ की हरकत हमें न पुसाई..पॉलिटिक्स की भेंट चढ़ी, ढ़ोल वालों की लग्नहाई
दूध पीते समय बिल्ली आंख मींज लेती है।
पिछले एक माह से चल रहे चुनावी मेलोड्रामा का आखिरकार समापन हो ही गया। सभी के उम्मीदवार घोषित हो चुके है। हालांकि इस बार दलों ने काफी चालाकी दिखाते हुए गुटबाजी से बचने नया मंतर इजात किया था। ऐंन वक्त पर हुई घोषणा से पार्टी ने बागियों का तो इलाज कर दिया । लेकिन उनकी दिल की टीस का क्या.. हर सुखदुःख में पार्टी का झंडा हाँथ में थामे क्षेत्र में फक्र से घूमने वाला कार्यकर्ता अब अपने क्षेत्र में किस मुंह से जाएगा और लोगों को क्या बतायेगा। नए चेहरे के लिए कैसे जनाधार जुटाएगा और किस मुंह से पार्टी के गुणगान गायेगा। इधर क्षेत्र की जनता की माने तो हर जगह यही बात चल रही है कि जो पार्टी अपने कार्यकर्ता की सगी न हुई वो जनता की सगी कैसे होगी। बेचारे कार्यकर्ता को रह रह कर यही बातें खींज देती है।लेकिन यही तो पॉलिटिक्स है जहां सब जायज़ है।वो कहतें है न कि..दूध पीते समय बिल्ली आंख मींज लेती है।