जबलपुर नगरीय निकाय चुनाव में कहीं इस्तीफ़े.. तो कहीं नाम वापस लेने का दौर शुरू
पार्टियों के डेमेज कंट्रोल विभाग में जारी है घमासान
जबलपुर नगरीय निकाय चुनावों में जिस समय प्रत्याशियों को जनता के दरवाज़े पहुंचकर विकास कार्यों की बात करना चाहिये था। उस समय वे अभी भी पार्टी कार्यालय या फिर कलेक्ट्रेट के चक्कर काटने में जुटे है। दरअसल यह पूरा हंगामा इस बार के टिकट वितरण प्रणाली को लेकर हुआ है। जहां हर राजनीतिक दल से उसका कार्यकर्ता नाराज़ दिखाई दे रहा है। ऐसे में एक्टिव हुए डिसास्टर मैनेजमेंट के सामने अब बड़ी ही पेचीदा स्थिति बन गयी है। जहां पार्टी के प्रचार से ज्यादा जरूरी पार्टी को गुटबाजी से रोकना है। पार्टी का आला कमान अपने एक भी कार्यकर्ता को हाँथ से जाने नहीं देना चाहता। लेकिन टिकट की टीस ने कार्यकर्ता को काफी विचलित कर रखा है।
निर्दलीय फॉर्म उठवाने और पार्टी प्रचार पर जोर देने की कवायद
इधर प्रथम प्राथमिकता में सभी राजनैतिक दल बागी प्रत्याशियों को मनाने में जुटे है। पार्टी के दायित्वों का वास्ता याद दिलाकर उन्हें फिर से घर वापसी की राह बताई जा रही है। कहीं दबाब तो कहीं मान मनुहार के जरिये किसी भी तरह से पार्टी के नुकसान को रोकने का प्रयास किया जा रहा है।
कलेक्ट्रेट में नज़र जमाये बैठा है एक खास अमला
बागी कार्यकर्ताओ ने जोश में आकर फॉर्म तो डाल दिये।लेकिन अभी भी फॉर्म वापस लेने की गुंजाइश को देखते हुए तमाम राजनीतिक दलों का एक खास अमला कलेक्ट्रेट में अपनी नज़र जमाये बैठा है। जिसका मुख्य काम प्रत्याशी का नाम वापस कराने में मदद करना बताया जा रहा है। डैमेज कंट्रोल के बाद यही अमला नाराज कार्यकर्ता को राह दिखाने में प्रमुख भूमिका निभाता नज़र आ रहा है।
डेमेज कंट्रोल करने वाले ही कर सकते है डेमेज
घर को रोशन करने वाले दिए से ही जब घर जलने की आशंका बढ़ जाये तो इससे बदतर स्थिति और कोई नहीं हो सकती क्योंकि बचाव की स्थिति में घर पर अंधेरा ही रहेगा। यही स्थिति नागरीय निकाय चुनावों में राजनीतिक दलों की हो गयी है। जहां वर्तमान में बागी हुए प्रयाशी न केवल अधिकृत प्रत्याशी को नुकसान पहुंचाएंगे बल्कि भावी समीकरण भी खराब करेंगे। ऐसे में सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा के सामने पार्टी के ही युवा कार्यकर्ता नकुल गुप्ता बगावत का बिगुल फूंकते हुए निर्दलीय महापौर उम्मीदवार के रूप में मैदान पर है। वहीं कॉंग्रेस से जाने माने राजनेता राजीव तिवारी भी कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी को चुनौती देने एड़ी चोटी का जोर लगा रहे है। पार्षद पद को लेकर भी कुछ ऐसी ही उठापटक जारी है। एक विधायक प्रतिनिधि ने भी अपनी पत्नी को आप से उम्मीदवारी दिलवा दी है। वहीं मुस्लिम वोटों को करारा झटका देते हुए आफरीन मंजूर अहमद भी बगावत पर उतर आईं है। इधर टिकट वितरण प्रणाली से नाराज सभी दलों के कार्यकर्ता कहीं न कहीं बगावत की राह थामते नज़र आ रहे है।बताया जा रहा है कि ये वही जुझारू कार्यकर्ता है जो अक्सर डैमेज कंट्रोल किया करते थे ।लेकिन अब खुद ही बागी हो गए। ऐसे में दलों का डेमेज कंट्रोल सिस्टम किस हद तक अपनी कलाकारी दिखा पता है। यह देखना काफी रोमांचक होगा।