मरीजों का लाक्षागृह..कौन है कलयुग के कौरव..??अस्पताल अग्निकांड होना चाहिए सार्वजनिक पोस्टमार्टम
विकास सोनी-
संपादक (विकास की कलम)
जबलपुर के दमोह नाका क्षेत्र में कोरोना काल के दौरान खड़ा हुआ एक निजी अस्पताल बीते दिन मौत की भट्टी में तब्दील हो गया। अचानक अस्पताल में लगी आग ने 8 लोगों को जिंदा जला दिया। वहीं दर्जन भर लोग इस आग में झुलस गए। इस घटना ने शहर की पुलिस ततपरता और जनता के आपसी तालमेल की बेहत उन्दा मिसाल पेश की।संकट के समय में सभी एकजुट होकर आपदा प्रबंधन में जुट गए।और बेहतर राहत कार्य को अंजाम दिया। लेकिन इस घटना ने शहर की जनता के बीच एक बड़ा सवाल खड़ा किया है।
आखिर किसकी शह पर यह "लाक्षागृह"खड़ा किया गया और कौन है इस लाक्षागृह के पीछे छुपे कलयुग के कौरव..?
कैसे खुल गया नियम विरुद्ध अस्पताल
अब जबकि हादसा हो चुका लिहाजा अस्पताल के निर्माण से लेकर प्रशासनिक अनुमतियों तक सबकी परत उधड़ने लगी है। 8 लोगों की मौत अपने आप में एक बड़ा आंकड़ा होता है। जिसे सहज ही पचा पाना आम बात नहीं है।लेकिन सवाल से मुँह भी नहीं चुराया जा सकता ।लिहाजा अब अस्पताल के अग्निकांड के पोस्टमार्टम की तैयारी की जा रही है।
क्या अस्पताल के पास थी फायर सेफ्टी की एनओसी..??
जबलपुर के इस अस्पताल में दर्दनाक घटना आग लगने से हुई इसलिए सबसे पहला सवाल तो फायर सेफ्टी की एनओसी को लेकर ही खड़ा हो रहा है। सूत्र बताते है कि इस अस्पताल के पास न तो फायर सेफ्टी की एनओसी थी और न ही दुर्घटना से निपटने के लिए कोई संसाधन। यहां सिर्फ एक बात पर ध्यान दिया गया था वो थी अस्पताल की साज सज्जा और मरीजों को लुभाने वाले उपकरण..
किस "ले-आउट" के आधार पर खड़ा हुआ अस्पताल..??
सूत्र बताते है कि इस अस्पताल की नींव ही झूठ और मक्कारी की बुनियाद पर रखी गई थी। प्राप्त जानकारी के अनुसार विभागीय दस्तावेजों में जो "ले-आउट" पेश किया गया है। हकीकत में यह अस्पताल उससे कोसों दूर है। अस्पताल में मरीजों को लाने ले जाने के लिए केवल एक ही प्रवेश मार्ग था। जो कि नियमों के हिसाब से बिल्कुल अनुचित है। यह नियम सिर्फ इसलिए होता है कि अगर कभी कोई आपदा की स्थिति बने तो समय रहते बड़ी संख्या में बचाव कार्य किया जा सके।
तीन दिशा में खुला होना चाहिए था अस्पताल..
अस्पताल बनाने के दौरान सबसे विशेष नियम उसके आसपास खुले स्थान का होता है। अस्पताल का निर्माण होने के दौरान इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि अस्पताल का भवन तीन ओर से खुला होना चाहिए। इसके पीछे मंशा अस्पताल में विषम स्थिति पर त्वरित सहायता पहुंचाने के लिए होती है। नियमों की माने तो अस्पताल के भवन को तीन दिशाओं में 3.6 वर्गमीटर खुला होना चाहिए। लेकिन इस अस्पताल में में इस नियम की भी अनदेखी की गई।
आखिर कौन है जिम्मेदार..??
इस अस्पताल में हुए अग्निकांड ने यह बात तो साफ कर दी है।कि नियमों को ताक पर रखकर बड़ी कमीशनबाजी करते हुए इस लाक्षागृह का निर्माण कराया गया था। लेकिन इसके पीछे जिम्मेदार कौन है इस बात का खुलासा होना अभी बांकी है। अक्सर देखा गया है कि ऐसे मामलों में बलि का बकरा शहीद कर असली कसाई साफ साफ बच निकलता है।लेकिन इस बार 8 लोगों की मौत का सवाल है लिहाजा अग्नि कांड का पोस्टमार्टम तो होना ही चाहिए। सवाल यह है कि अव्यवस्थित दस्तावेजों के आधार पर अस्पताल को अनुमति कैसे मिल गई। अस्पताल का सर्वे करने आई जांच समिति गुमराह कैसे हुई। एनएबीएच के मापदंडों को कैसे दरकिनार किया गया। रही बात इस लाक्षागृह के निर्माण से जुड़े कौरवों की तो बड़ी कुर्सी में बैठे वे कलाकार जो कमीशन के लिए किसी की जान की परवाह भी नहीं करते सबसे अहम है। वहीं इस कांड में उन्हें भी नहीं भुलाया जा सकता जिन्होंने अपने काम को पूरी जिम्मेदारी से न निभाते हुए जांच को हरी झंडी दे दी। बहरहाल इस अग्निकांड के बाद न्यू लाइफ अस्पताल के चारों पार्टनरों एवं अस्पताल मैनेजर गैर इरादतन हत्या का मामला विजय नगर थाने में दर्ज किया गया है। जिसमें मैनेजर गिरफ्तार किया जा चुका है वहीं अन्य 4 फरार दोषियों की तलाश की जा रही है। अब सवाल यह है कि गलत तरीके से अस्पताल बनाने वाला अगर जिम्मेदार है तो उसके गलत दस्तावेजों को अनुमति देने वाला निर्दोष कैसे हो सकता है।
गैर इरादतन हत्या का मामला हुआ दर्ज
इस भीषण अग्निकांड के लिए जिम्मेदार न्यू लाइफ मेडिसिटी अस्पताल के संचालक डाक्टर निशिंत गुप्ता डाक्टर सुरेश पटेल डाक्टर संतोष पटेल और डाक्टर संजय पटेल के खिलाफ विजय नगर पुलिस थाने में धारा 304 गैर इरादतान हत्या और धारा308 गैर ईरादतन हत्या का प्रयास के तहत मामला कायम कर लिया है अस्पताल के मैनेजर राम सोनी को भी इन्ही धाराओं के तहत गिरफ्तार कर लिया है जबकि चारों डाक्टर फरार बताए जा रहे हैं इस घटना ने शहर की जनता के बीच कई सवाल खड़े कर दिए हैं जिनके जवाब देना शासन प्रशासन और स्वस्थ विभाग को देने होंगे।
नगर निगम निगम भी कम दोषी नहीं
किसी भी भवन में जिसमें व्यवसायिक गतिविधियां चलती है में फायर सेफ्टी की क्या व्यवस्था है यह देखना नगर निगम की जिम्मेदारी है शहर में अनेक ऐसे अस्पताल है जो घनी आबादी में 1000 स्केयर फिट में बने हुए हैं जिनमें बाहर निकलने के लिए मात्र 10 फीट चौड़ा दरवाजा है अंदर से कहीं भी बाहर निकलने की गुंजाइश नहीं बनती अगर कभी ऐसी दुर्घटना होती है तो वहां भर्ती मरीजों की स्थिति क्या होगी इसका आकलन किया जा सकता है नगर निगम का कहना है अस्थाई फायर सेफ्टी लाइसेंस दिया था जो मार्च में ही खत्म हो चुकी था ऐसे में क्या नगर निगम का कर्तव्य नहीं बनता था कि वह ऐसे अस्पतालों पर तत्काल रोक लगाएं जिनके पास फायर सेफ्टी का कोई लाइसेंस ना हो नगर निगम ने आज भी अनेक अस्पतालों की जानकारी दी है जिन्होंने फायर सेफ्टी का लाइसेंस नगर निगम से नहीं लिया है इनमें छोटे तो छोटे बड़े और नामचीन अस्पताल भी शामिल है आम नागरिकों की मांग की नगर निगम के तमाम अधिकारियों पर कड़ी कार्यवाही की जाए जिनकी जिम्मेदारी यह देखने की थी।
सीएम शिवराज ने सुनाया सीएमएचओ के निलंबन का फरमान
जबलपुर में हुई अग्नि दुर्घटना की आज मंत्रालय में वीसी से समीक्षा की। जबलपुर के न्यू लाइफ हॉस्पिटल में हुई अग्नि दुर्घटना बेहद दुखद है। ऐसी व्यवस्थाएँ सुनिश्चित की जाएँ कि इस तरह की घटनाएँ प्रदेश में दोबारा न हों। घटना में दोषी पाए गए अस्पताल प्रबंधन पर गैर इरादतन हत्या का प्रकरण दर्ज कर कार्यवाही की जाए। घटना के जिम्मेदार सीएमएचओ और फायर सेफ्टी ऑफिसर को निलंबित करने के निर्देश दिए।
जबलपुर सहित पूरे प्रदेश में अस्पतालों की जाँच कराई जाए। अग्नि सुरक्षा व्यवस्था में कमी पाए जाने पर अस्पतालों के लाइसेंस निरस्त करें। दुर्घटनाएँ रोकने के लिए फायर एनओसी, बिल्डिंग परमीशन और इलेक्ट्रिकल सेफ्टी जरूरी है। घटना से सीख लेकर अग्नि सुरक्षा नीति में परिवर्तन करने के लिए तत्कालीन और दीर्घकालीन कदम उठाए जाएँ। अग्नि सुरक्षा के लिए अस्पताल, होटल और मल्टी भवनों पर एक समान नियम लागू करने की कार्यवाही करें।