एंटीबायोटिक लेने से बढ रही लिवर संबंधी समस्याएं
-बिना डॉक्टर की सलाह के खुद ही ले रहे एंटीबायोटिक दवाएं
नई दिल्ली । कई लोग बीमारियों के लक्षणों को देखकर बिना डॉक्टर की सलाह के मेडिकल स्टोरों से खुद ही एंटीबायोटिक दवाएं और पैरासिटामोल खरीद कर खा रहे हैं। ऐसे कई मामले अस्पतालों में आ रहे हैं जिनमें बीमारी से ठीक होने के बाद मरीजों को लिवर संबंधी समस्याएं हो रही हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मानें तो खुद से दवा खाने का यह तरीका काफी खतरनाक हो सकता है। फेलिक्स अस्पताल नोएडा की माइक्रोबॉयोलॉजिस्ट डॉ रितिका कहती हैं कि डॉक्टर की सलाह के बिना एंटीबायोटिक (एंटीमाइक्रोबियल) का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। यह काफी नुकसानदेह हो रहा है। बेहद जरूरी है कि डॉक्टर ने दवा जितने दिन के लिए और जितनी मात्रा में लिखी है उसका कोर्स पूरा करें। दवा का प्रयोग करने के बाद बेहतर महसूस कर रहें है तो भी कोर्स पूरा करें क्योंकि दवा लेने से प्रारंभिक स्तर पर मरीज के शरीर में आराम तो आ जाता है लेकिन संक्रमण पैदा करने वाले सूक्ष्मजीव पूरी तरह से खत्म नहीं होते हैं।
दवा का कोर्स बीच में छोड़ने से यह सूक्ष्मजीव धीरे धीरे उस दवा के प्रति प्रतिरोध क्षमता हासिल कर लेते हैं और अगली बार जब व्यक्ति बीमार पड़ता है तो वह दवा पूरी तरह असरदार नहीं होती है। दवाओं के कम प्रभावी रहने से यह संक्रमण शरीर में बना रह जाता है और दूसरों में फैलने का खतरा बरकरार रहता है। इससे इलाज की लागत बढ़ती है और मृत्युदर में इजाफा होने की संभावना बनी रहती है। चूंकि एंटीमाइक्रोबियल रेसिसटेंस या रोगाणुरोधी प्रतिरोध एक ऐसी स्थिति है जिसमें रोग पैदा करने वाले रोगाणु जैसे- बैक्टीरिया वायरस फंजाई तथा पैरासाइट्स दवाओं के प्रति प्रतिरोधी हो जाते हैं।
आम बोलचाल की भाषा में किसी सूक्ष्मजीव वायरस बैक्टीरिया आदि के संक्रमण के इलाज के लिए प्रयुक्त होने वाली दवा के प्रति उस सूक्ष्मजीव द्वारा प्रतिरोध क्षमता हासिल कर लेना ही एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस है। इसके परिणामस्वरूप मानक उपचार अप्रभावी या कम असरदार रहते हैं और इससे बीमारी के फैलने तथा मृत्यु की संभावना रहती है।मालूम हो कि बदलते मौसम में सिर्फ बच्चे ही नहीं बड़े लोग भी बीमार पड़ रहे हैं। सर्दी जुकाम बुखार डेंगू मलेरिया समेत कई तरह के मरीज आज सैकड़ों की संख्या में अस्पतालों में पहुंच रहे है।