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कमलनाथ की वापसी की होड़ ने उड़ाई राजनैतिक पंडितों की नींद..जानिए क्या कहता है राजनीति का गणित..



भोपाल/विकास की कलम।

 इस साल मप्र में विधानसभा चुनाव होना है। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ पूरे विश्वास के साथ ताल ठोककर कह रहे हैं कि भाजपा को हराकर हम सत्ता में आएंगे। कमलनाथ के इस विश्वास ने भाजपा की चिंता बढ़ा दी है। फील्ड से भी जो समाचार आ रहे हैं। वह आशा जनक नहीं है। इसकी वजह यह है कि चुनावी साल में भाजपा कई गुटों में बटी नजर आ रही है। एंटी इनकम्बेंसी बेरोजगारी महंगाई भाजपा के लिए पहले से परेशानी का सबब बने हुए हैं। ऐसे में पार्टी के क्षत्रपों की गुटबाजी ने आलाकमान को पसोपेश में डाल दिया है। यही कारण है कि पिछले 6 माह से आलाकमान के सिपाही और संघ के पदाधिकारी मप्र में लगातार बैठकें करके समन्वय बनाने पर जोर दे रहे हैं। लेकिन अभी तक उसका कोई असर पड़ता नहीं दिख रहा है। ऐसे में जो आसार दिख रहे हैं उसके अनुसार आगामी चुनाव में भाजपा बनाम कांग्रेस की बजाय भाजपा बनाम भाजपा के बीच ही मुकाबला होने की संभावना है। 

संघ सूत्रों के अनुसार मप्र में सत्ता और संगठन में जो समन्वय दिख रहा है वह ऊपर ही ऊपर है। अंदर नेता एक-दूसरे के लिए खंदक खोदने में जुटे हुए हैं। संघ सूत्रों की मानें तो वर्तमान में भाजपा में 4 बड़े गुट बने हुए हैं। पहला गुट केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और कैलाश विजयवर्गीय का दूसरा गुट प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा और नरोत्तम मिश्रा का तीसरा गुट सिंधिया और उनके समर्थकों का तथा चौथा गुट मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का है। पार्टी में पहली बार बड़े स्तर पर गुटबाजी हुई है। इनके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती अलग ही राग अलाप रही हैं। भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुराने कार्यकर्ता और स्वयं सेवक नाराज हैं। उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। इसका असर यह हो रहा है कि भाजपा कार्यकर्ता भी अलग-थलग पड़ गए हैं। 

विस्तारित कार्यसमिति की बैठक में दिखी गुटबाजी

पिछले महीने कटनी में हुई प्रदेश भाजपा कार्यसमिति की विस्तारित बैठक में गुटबाजी देखने को मिली। पार्टी ने महाकौशल बुंदेलखंड और विंध्य क्षेत्र को साधने के लिए यह बैठक आयोजित की थी। लेकिन बैठक से ज्योतिरादित्य सिंधिया नरेंद्र सिंह तोमर नरोत्तम मिश्रा और प्रहलाद पटेल जैसे बड़े नेता अनुपस्थित रहे। यह कहीं ना कहीं पार्टी नेताओं की आपसी गुटबाजी और नाराजगी की ओर इशारा करती है। पार्टी ने अपने लिए जो लक्ष्य तय किये है उसमें गुटबाजी बड़ी बाधा बन सकती है। ज्योतिरादित्य सिंधिया की नाराजगी की वजह यह है कि ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में पार्टी के पुराने नेता उन्हें दरकिनार करने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरी ओर पुराने नेता पार्टी में सिंधिया की बढ़ती हैसियत से खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।

-सभी के निशाने पर शिवराज

शिवराज सिंह चौहान जबसे चौथी बार मुख्यमंत्री बने हैं वे प्रदेश भाजपा के टारगेट पर हैं। इसकी वजह यह है कि कांग्रेस सरकार के मंत्रियों और विधायकों को तोड़ने में जिन नेताओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी उन्हें दरकिनार करते हुए शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाया गया। उसके बाद कई मौकों पर शिवराज के खिलाफ बगावत की कोशिश हुई। लेकिन आलाकमान के हस्तक्षेप के बाद मामला शांत होता गया। लेकिन बगावत की आग अभी भी सुलग रही है। भाजपा सूत्रों का कहना है कि चौथी पारी में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की निरंकुशता और मनमानी बढ़ी है। जिसका पार्टी के नेताओं पर असर पड़ा है। इसलिए हर एक की कोशिश यही है कि चुनावी रण में शिवराज सिंह चौहान को आईना दिखाया जाए। 

सिंधिया समर्थक टारगेट पर 

भाजपा में गुटबाजी की एक बड़ी वजह है ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थकों का वर्चस्व। दरअसल चौथी बार सत्ता में आने के बाद शिवराज सिंह चौहान की सिंधिया से जुगलबंदी मजबूत हुई है। इस कारण सत्ता में सिंधिया समर्थकों को बड़े और कमाऊ विभागों की जिम्मेदारी सौंपी गई है। यही नहीं संगठन में भी उन्हें विशेष महत्व दिया जा रहा है। इस कारण भाजपा के खांटी नेताओं में नाराजगी है। मंत्री हो या विधायक हर किसी के टारगेट पर सिंधिया समर्थक हैं। लगातार  कोशिश की जा रही है कि सिंधिया समर्थकों की साख गिराई जाए। जिसके लिए लगातार प्रयास हो रहे हैं। 

-भाजपा के पूर्व विधायक बोले 2023 में हार रही है भाजपा

जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं वैसे ही चंबल अंचल में भाजपा की गुटबाजी पार्टी पर हावी होती जा रही है। यही कारण है कि अब भाजपा में सिंधिया समर्थक वर्सेस भाजपा की अंदरूनी की लड़ाई पार्टी को नुकसान कर रही है। इसी को लेकर भाजपा के पूर्व विधायक सत्यपाल सिंह सिकरवार ने अपना दर्द बयां किया है। पूर्व विधायक सत्यपाल सिंह सिकरवार ने कहा है कि अब भाजपा की लड़ाई किसी दूसरी पार्टी से नहीं बल्कि खुद से चल रही है जो पहले कभी कांग्रेस की स्थिति हुआ करती थी वह अब भाजपा पार्टी की है। जिन नेताओं से हमने वर्षों तक लड़ाई लड़ी और जिन माफिया से लड़ाई लड़ी। आज वही अगर भाजपा के नेता बन कर आएंगे तो हम कैसे स्वीकार करेंगे। उनका कहना है कि भाजपा के हालात ऐसे हो गए हैं कि जो जमीनी कार्यकर्ता है वह काफी हताश और निराश नजर आ रहा है।




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