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हम बोलेगा.. तो बोलोगे की..बोलता है..




 चाचा के चांटा से पार्टी में सन्नाटा

शहर के एक चाचा और उनकी बगराई चकल्लस जबलपुर के मार्बल से भी ज्यादा फेमस होती जा रही है। चाचा बहुत संवेदनशील है और चर्चा लिखने वालों पे भी पैनी नज़र रखते है। हालांकि उनके नज़रिए के भी किस्से काफी मशहूर है। हाथ जोड़कर पंजे की ताकत से पॉलिटिक्स में पकड़ बनाने वाले चाचा ने कमल के नाथ की सेवा करते करते कब कमल को सिरमौर बना लिया इसके लिए एक अलग काव्य पर चर्चा की जा सकती है। फिलहाल चाचा फार्म पर है, और यही कारण है कि चौगड्डे से लेकर चौपाटी तक सिर्फ चाचा की चर्चा मशहूर हो चली है। विवादों की विरुदावली के बीच एक और वाक्या खुलकरसमने आया है। सुना है चाचा ने इस बार एक महिला को चांटा जड़ दिया है। 

चुगलखोर सूत्र बताते है कि..एक महिला ने इस बार चाचा के खिलाफ थाने में पक्की रपट लिखवाई है। मोहल्ले वालों की माने तो शार्ट-टेम्पर चाचा इस बार  पार्किंग के चलते एक महिला से भिड़ गए। और अभद्रता करते हुए महिला को एक जोरदार चांटा भी जड़ दिया। वहीं महिला ने भी मौके पर चाचा के अच्छे भद्रा उतारे उसके बाद थाने पहुंचकर शिकायत भी दर्ज कराई। बात चूंकि चाचा से जुड़ी थी लिहाजा हंगामा तो होना ही था। बताया जा रहा है कि महिला को पड़े चांटे की गूंज राजधानी तक हलचल मचा रही है। फिलहाल हमेशा की तरह पार्टी का डेमेज कंट्रोल सिस्टम एक्टिव होकर मामले को सुलटाने में जुटा है। 

लेकिन मामा के राज में मामा का ही सिपे-सलार जब भांजियों पर चांटा चटकाने लगे तो कुर्सी हिलना लाजमी है। 

माताओं बहनों के सम्मान की यूएसपी के साथ कुर्सी पर बैठे मामा शिवराज की साख पर यह चांटा भारी न पड़ जाए इस डर से पार्टी के सारे भीष्म पितामह मौन धारण करे बैठे है।

शहर की जनता बार बार पूंछ रही है कि आखिर गलती किसकी थी और किसने बबाल काटा..

लेकिन खामोशी देख तो यही लग रहा है कि..

चाचा के चांटा से पार्टी में सन्नाटा..



विक्टोरिया में बैक्टीरिया वाली स्लाइन..

सरकारी अस्पतालों को भले ही सेटिंग से सफलता का सर्टिफिकेट मिल जाए लेकिन यहां की लापरवाही समय समय पर उसके सरकारी होने का अहसास कराती रहती है। कभी जमीन पर डला मरीज तो कभी मौत की कगार में खड़े पीड़ित से सौदेबाजी यहां का आम रिवाज है। गद्दी पर बैठा हर शख्स केवल उगाही के हथकंडों पर ही ध्यान देता है। नतीजतन यहां आने वाले मरीज रोजाना एक नए कारनामे से रूबरू होते है। इसी बीच जिला अस्पताल जबलपुर में मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ किये जाने का  एक और कारनामा सामने आया है । प्राप्त जानकारी के अनुसार  जिला अस्पताल में मरीजों को लगाने के लिए आई आइबी फ्लूड लिक्विड सोडियम कम्पाउंड की बोतलों में खतरनाक बैक्टीरियल एंडोटाक्विन फंगस पाया गया है।

यह खुलासा तब हुआ जब खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग ने विक्टोरिया चिकित्सालय से स्लाइन का सैम्पल लिया। इस सैम्पल को जबलपुर में जांचा गया जहां यह अमानक पाया गया जिसके बाद इसे कोलकत्ता भेजा गया और यहाँ भी इसे अमानक करार दिया गया। स्वास्थ्य विभाग की इस लापरवाही का खामियाजा मरीजों को उठाना पड़ा। विक्टोरिया अस्पताल में यह स्लाइन कई मरीजों को चढ़ाया भी गया था। जिससे उनकी हालत बिगड़ गई थी। अमानक रिपोर्ट मिलने के बाद अब आइबी फ्लूड सप्लाई करने वाली धार की कंपनी के खिलाफ कोर्ट में मुकदमा पेश करने की तैयारी की जा रही है। 

आपको बतादें की यह पूरा मामला जुलाई 2022 का है। खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग के अनुसार विक्टोरिया जिला अस्पताल में आईबीज ड्रग्स लिमिटेड प्राइवेट लिमिटेड घाटा बिल्लोद जिला धार से पांच हजार आईबी फ्लूड कंपाउंड सोडियम की आपूर्ति की गई थी। जुलाई 2022 में अस्पताल में स्टॉक आया। अस्पताल के डीबीडी वार्ड व मेडिसिन वार्ड में भर्ती मरीजों को उक्त आईबी फ्लूड लगाया गया।  जिला चिकित्सालय में भर्ती मरीजों को जब स्लाइन चढ़ाया गया तो अचानक मरीजों को कंपकपी छूटने लगी, वही उन्हे बुखार आने लगा। वही कई मरीजों की हालत ज्यादा बिगड़ने लगी, मामला सामने आते ही डाक्टर्स ने फौरन मरीजों का इलाज शुरू किया।  किसी तरह से हालात को संभाला गया। बाद में इसकी शिकायत  की गई जिसके बाद ड्रग इंस्पेक्टर शरद जैन नमूने लिए और विशेष अनुमति लेकर इसका नमूना केन्द्रीय औषधि प्रयोगशाला कोलकाता भेजा गया। जिसकी रिपोर्ट अमानक आई है।

इस मामले के खुलासे के बाद से ही मरीजों और उनके परिजनों की जान हलक को आ चुकी है। भले ही वे सस्ती स्वास्थ्य सेवा के लिए यहां पहुंचते हों पर जान तो सबको प्यारी है।

इधर अस्पताल परिसर पर धूप तापते मरीज के परिजनों के बीच अब ये चर्चा आम हो चालए है कि ..

क्या तुम्हें भी लगाई गयी थी..

विक्टोरिया में बैक्टीरिया वाली स्लाइन..


सौतेलेपन के बीच मुखिया की नसीहत

उपेक्षा का दंश झेल रही संस्कारधानी को हाल ही में इंदौर से सीख लेने की नसीहत दी गई है। कहने को तो जबलपुरिया सबसे आला होते है लेकिन जब सहूलियत ही न मिली तो सफलता कैसे मिलेगी। लिहाजा नसीहत देने वाले के फरमान को लेकर सहूलियत के हवाले से चर्चा आम होने लगी। आपको बतादें की प्रदेश के मुखिया ने जबलपुर को इंदौर से सीख लेने एवं स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की नसीहत दी है। लेकिन सवाल यह है कि हरबार उपेक्षा और सौतेले जैसा व्यवहार होने से परेशान शहर प्रतिस्पर्धा में विजयी कैसे हो सकता है। वहीं सौतेलेपन का यह दर्द भी तो मौजूदा सरकार ने ही संस्कारधानी को दिया है। आलम यह है कि अब जबलपुर के बुद्धिजीवी इस नसीहत का जबाब नसीहत से देते हुए कहते नज़र आ रहे है कि इंदौर से तुलना करते समय अगर मुखिया जी इस बात पर भी ध्यान दे देते की बीते सालों में जबलपुर को आखिर दिया ही क्या..??

२४ लाख की आबादी वाले जिले को शिवराज सरकार के द्वारा बीते दो कार्यकाल में एक कैबिनेट मंत्री तक नहीं दिया गया। टूरिज्म की आपार संभावनाओं के बाद भी जबलपुर को घोषणाओं के अलावा कुछ नहीं मिला। ऐतिहासिक आयुध निर्माणियों की शृंखला जबलपुर में थी। जबलपुर जिला डिफेंस क्लस्टर का हकदार था । लेकिन नहीं दिया गया। जबलपुर की तरफ आने वाले उद्योग और निवेश की राहें प्रदेश के दूसरे जिलों की तरफ मोड़ दी गईं। जबलपुर आखिर किसकी सरपरस्ती पर दौड़ लगाए। ये बात सच है कि इंदौर बहुत मामलों में जबलपुर से कई कदम आगे है जिससे जबलपुर को सीखना चाहिये। लेकिन यह भी हकीकत है कि इंदौर में सहूलियतों का जो भंडारा खोला गया है उसका एक चौथाई भी संस्कारधानी को मिल जाए तो वह सफलता के नाम पर राजधानी को भी पछाड़ सकती है। पर सोचने वाली बात तो यह है कि कला संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य से लबरेज इस शहर के पीछे रहने की क्या है हकीकत..

मंथन के इस दौर में चिंतन को मजबूर कर रही...

 सौतेलेपन के बीच मुखिया की नसीहत..



 

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