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हम बोलेगा तो..बोलोगे की..बोलता है..






उफ्फ ये "इल्ली"..

क्या ये भी सिर्फ रसगुल्ला खाने आई थी..?



शहर में सदन की बैठक हो और हंगामा न मचे तो बैठक कैसी..?? वैसे तो सदन की बैठक में चिल्लाचोट होना आम बात होती है। लेकिन इस बार सदन की बैठक के बाद कुछ ऐसा हुआ ..जिसे सुनने के बाद बैठक में मौजूद हर शख्स के पेट में मरोड़ उठने लगी है। मामला जबलपुर जिले से जुड़ा है। जहां सदन की बैठक के बाद परोसे गए स्वल्पाहार में मौजूद इल्ली ने व्यवस्थाओं के दुरुस्तीकरण पर सवालिया निशान खड़े किए है।
दरअसल शहर को संवारने की जुबानी जंग से थके हारे जनप्रतिनिधि जब अपनी जुबान को तरावट देने स्वल्पाहार की ओर बढ़े। तो उन्हें अंदाजा भी नहीं था की ठेकेदार की शिकायत करने एक इल्ली तड़के सुबह से ही रसगुल्ले की प्लेट पर ज्ञापन लेकर धरना दिए बैठी थी। बताया जा रहा है कि वह मोदी जी के स्वच्छ भारत मिशन अभियान में हो रही लापरवाही की शिकायत करने पहुंची थी।
खैर उसे क्या पता था कि बड़े बड़े मामलों की तरह इस इल्ली के ज्ञापन को भी आसानी से पचा लिया जाएगा।
और हुआ भी वही..क्योंकि किसी को पता ही नहीं चला कि रसगुल्ले की प्लेट में इल्ली थी। बताया जा रहा है कि इल्ली के कई साथियों को तो बिना देखे ही डकार लिया गया।
वो तो गनीमत रही की.. एक पार्षदा की नजरें इनायत इस इल्ली पर हो गई। सूत्र बताते है कि उन्होंने न केवल इल्ली की समस्याओं को सुना बल्कि मामले को गंभीरता से लेते हुए परेशानी को जिम्मेदारों तक पहुंचाया भी।
इस पूरे मामले को लेकर सदन के बाहर और अंदर जमकर चर्चा हुई। अपने समर्थकों के साथ पार्षदा महोदया ने फरियादी इल्ली की गुहार को निगम अध्यक्ष तक पहुंचाया और खाना बनाने वाले ठेकेदार द्वारा की की गई लापरवाही का खुलासा भी किया।पार्षदों का कहना था कि कैटरिंग वाले की गलती से पार्षदों की सेहत बिगड़ सकती है। दोबारा कैटरिंग वाले को ठेका देने के पहले साफ-सफाई से खाना बनाने के निर्देश दिए जाए।
बातचीत के दौरान पता चला कि इल्ली जिस मकसद से सदन की बैठक में आई थी वह मकसद एक सजग पार्षदा की जागरूकता के चलते ही पूरा हो पाया। उसे इस बात की खुशी थी कि उसका प्रयास सफल हुआ और ठेकेदार की लापरवाही उजागर हो सकी। लेकिन उसे इस बात का भी गम था कि खुलासे की इस लड़ाई में उसके सैकड़ों कार्यकर्ता शहीद हो चुके थे। जो अब ना जाने किस किस माननीय के पेट में इंकलाब की ज्वाला फूंकेंगे।
एक ओर जहां इस मामले को लेकर निगम के गलियारों में ठेकेदार की लापरवाही को लेकर जमकर चर्चा हो रही थी। वहीं कुछ राग दरबारीयों का यह भी कहना था कि इल्ली को अपनी समस्या सदन की बैठक के दौरान उठानी चाहिए थी। उसका रसगुल्ले की प्लेट पर बैठ कर धरना देना उचित नहीं था। कुछ ने तो यह भी आरोप लगाया है कि ठेकेदार द्वारा कमीशन ना दिए जाने पर दुर्भावनावश इल्ली ने यह पूरा प्रपोगंडा रचा था।
बात तो सही है कि इल्ली को पूरे नियमों कानून के साथ अपनी बात को रखने के लिए सदन में जाना चाहिए था। लेकिन रसगुल्ले की चाहत ने उसे गुनहगार साबित कर दिया । हालांकि नजरिए को बदल कर देखा जाए तो इसी रसगुल्ले के चलते आम इल्ली पर खास लोगों की नज़र गई।
खैर आखरी फैसला जनता जनार्धन का होता है लिहाजा विकास की कलम अपने पाठकों के सामने इस गंभीर व्यंग को रखते हुए सारा फैसला उनके विवेक पर छोड़ती है ।
और अंतिम शब्द सिर्फ यही लिखती है कि...

उफ्फ ये "इल्ली"..
क्या ये भी सिर्फ रसगुल्ला खाने आई थी..?







आखिर क्यों नहीं छूट रहा..
मलाईदार कुर्सी को लेकर मेडम का मोह..


जिला अस्पताल की एक कुर्सी इन दिनों कुश्ती का अखाड़ा बनी हुई है। जहां पद के उम्मीदवार संस्कारधानी से लेकर राजधानी तक जोर आजमाइश करते दिखाई दे रहे है। यह पूरा मामला रूलर एरिया के डीएचओ पद को लेकर जुड़ा हुआ है।लंबे समय से इस पद की शोभा एक महिला चिकित्सक बढ़ा रही थी।लेकिन आधे महीने पहले ही आए एक फरमान ने महिला चिकित्सक की रातों की नींद उड़ा दी। विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार बीते माह ही उनका स्थानांतरण जबलपुर से कटनी जिले में कर दिया गया था। और इसी कड़ी में उनकी जगह मझोली में पदस्थ बीएमओ को डीएचओ की कुर्सी सौंप दी गई। अचानक हुए इस बदलाव ने सेटिंग के सारे समीकरण ही बिगाड़ दिए। इससे पहले की जुगाड़ मेल दौड़ पाती , आनन फानन में साहब ने भी सहजता से न केवल गद्दी संभाल ली बल्कि कामकाज भी शुरू कर दिया। मौसम की करवट से बेखबर नए साहब को क्या पता था कि सियासी षडयंत्रों से लबरेज जिला अस्पताल में आसानी से कुर्सी संभाल लेना इतना आसान नहीं होता। खैर पद संभालने के कुछ ही दिनों बाद नए साहब को सिस्टम की लाचारी का पूरा एहसास हो गया।
महज कुछ ही दिनों के बाद कटनी स्थानांतरित हुई डीएचओ मैडम फिर से जिला अस्पताल जबलपुर के गलियारों में नजर आने लगी। और वे अपने पूर्व पद के अनुसार डंके की चोट पर अपना काम भी करने लगी। इतना ही नहीं डी एच ओ को मिलने वाली गाड़ी मैं धड़ल्ले से घूमते हुए मैडम साहिबा फील्ड की भी सैर कर रही है । साथ ही पूरे काम भी सहजता के साथ निपटा रही है।

अचानक हो रहे इस हस्तक्षेप को लेकर नए साहब के पैरों तले जमीन खसकती नजर आ रही है। नाम के डीएचओ बने नए साहब के पास ना तो गाड़ी है और ना ही कुर्सी और ऐसे में साहब जिला अस्पताल में तमाशबीन बनकर टहलते नजर आ रहे हैं।
सूत्र बताते हैं कि अपने साथ हो रही इस दुर्दशा को लेकर नए साहब ने जिले के सबसे बड़े अधिकारी के सामने मदद की गुहार भी लगाई लेकिन कोई संतोषजनक जवाब ना आने पर उल्टे पैर ही लौट कर सिस्टम के सिस्टम को समझने का प्रयास करने लगे।
चुगल खोर सूत्र बताते हैं कि साहब तो केवल नाम के डीएचओ हैं बल्कि सारा काम तो ट्रांसफर हो चुकी मैडम खुद संभाल रहीं है। फिर चाहे चेक पर साइन करना हो या फिर विभाग से मिली गाड़ी का सैर सपाटा। मैडम की मर्जी के बिना यहां पत्ता भी नहीं हिलता और इधर विभागीय आदेश पर आए नए साहब सिर्फ कर्मचारियों का मुंह ताकते नजर आ रहे हैं।

आलम तो यह है कि अब जिला अस्पताल का हर छोटा-बड़ा कर्मचारी यह कहने में भी गुरेज नहीं कर रहा की..

कौन लेगा मझौली वाले नए साहब की परेशानी की टोह..

आखिर क्यों नहीं छूट रहा..
मलाईदार कुर्सी को लेकर मेडम का मोह..




काय.. आजकल स्पाइस जेट नहीं आ रई का..


मानो कल की ही बात थी जब शहर के हर अखबार लाल पट्टी वाले विमान की विरुदावली गाने के लिए कॉलम पर कॉलम लिखते नज़र आ रहे थे। लेकिन अपनी तारीफों से ओवर कॉन्फिडेंट हुई इस विमान सेवा ने शहर के हवाई अड्डे पर कुछ ऐसी दौड़ लगाई की एक नहीं कई बार लड़खड़ा के गिर पड़ी। शहर के उड़ान प्रेमी ग्राहकों का अनुभव भी इस विमान सेवा को लेकर काफी खट्टा नज़र आया। सूत्रों कि माने तो स्पाइस जेट पर आर्थिक संकट गहरा गया है। स्पाइस जेट के विमानों की लीज खत्म हो जाने के कारण 2 मार्च से स्पाइस जेट एयर लाइंस ने जबलपुर से अपना कारोबार समेट लिया है। हालांकि स्पाइस जेट ने 17 मार्च तक आधिकारिक तौर पर उड़ानों को निरस्त करने का ऐलान किया है लेकिन जानकारों की माने तो वह पूरी तरह से अपना कारोबार समेटने का मन बना चुकी है। इधर स्पाइस जेट के लड़खड़ाने के बाद शहर में विमान सेवाओ के दाम आसमान छूने लगे है। इधर शहर के विमानतल को संवारने करोड़ों रुपये फूंके जा रहे है। वहीं दूसरी ओर महानगरों की यात्रा करने वाले यात्रियों को सुविधा के अभाव में दोगुना किराया देना पड़ रहा है।लेकिन अक्सर मोटे विज्ञापन की आस में विरुदावली गाने वाले संस्थान अब शहर की इस क्षति पर दो लाइन तक नहीं लिख पा रहे है। गौर किया जाए तो स्पाइस जेट की सेवा एकाएक बंद होने से व्यापारी और उद्योगपति नागरिकों को काफी निराशा हुई है। वहीं इसका असर शहर की साख पर भी पड़ा है। अब ऐसे में शहर के जनप्रतिनिधियों को चाहिए कि वे शहर की विमान सेवा को दुरुस्त करने और भी बेहतर प्रयास करें।
अब यह देखना काफी दिलचस्प होगा कि शहर के जिम्मेदार किस तरह से शहर की विमान सेवा को फिर से रनवे पर लौटा कर लाएंगे। फिलहाल तो जबलपुर के बाशिंदे महंगे किराए के चलते हवाई यात्रा के अपने अरमानों को ठंडे बस्ते में डालकर बैठे हैं और आए दिन सिर्फ यही सवाल करते हैं की

काय.. आजकल स्पाइस जेट नहीं आ रई का..

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