जबलपुर/विकास की कलम
नया सत्र आ चुका है और हर साल की तरह इस साल भी स्कूलों में कमाई की लगन हाई जोरों पर है नर्सरी से लेकर 12वीं तक कोई भी ऐसी क्लास नहीं जहां खुलेआम लूट का खेल ना खेला जा रहा हो। नए स्टाफ को सख्त हिदायत दी जाती है कि सारी वसूली अप्रैल से मई माह के बीच में ही कर ली जाए.. क्योंकि जुलाई माह से आंदोलन और अधिकारियों के एक्टिव होने की खबरें आ रही हैं।
उक्त संवाद एक प्राइवेट स्कूल के प्रिंसिपल ने काफी तीखे स्वर के साथ अपने स्कूल के स्टाफ को संबोधित करते हुए दिया।
बात भले ही बच्चों के भविष्य को लेकर जुड़ी हुई हो लेकिन इसके पीछे एक बड़ी गहरी साजिश की भी बू आ रही है।
निजी स्कूलों का सिंडिकेट जोरो पर
बीते कुछ वर्षों में एक नए ही तरह के सिंडीकेट का खुलासा हुआ है जहां शिक्षा के मंदिर से अभिभावकों पर घात लगाए बैठे यह शातिर ठग भावनात्मक कटार लेकर पग पग पर लोगों का गला रेतते दिखाई दे रहे। अगर आप सोच रहे हैं कि आपने अपने बच्चे का एक निजी स्कूल में एडमिशन करा कर गंगा नहा ली है तो आप गलत हैं क्योंकि यहीं से शुरू होता है स्कूली सिंडिकेट का मकड़जाल। एडमिशन की भारी-भरकम फीस चुका देने के बाद भी स्कूल संचालक द्वारा लूट का सिलसिला जारी रहता है। नए सत्र की शुरुआत के साथ ही स्कूल प्रबंधन द्वारा बच्चे की कक्षा से संबंधित पढ़ाई की पुस्तकों की सूची थमा दी जाती है और उसके साथ ही यूनिफार्म समेत तमाम चीजों की लिस्ट भी पलकों को दी जाती है और उनसे कहा जाता है कि एक स्थान विशेष पर पाई जाने वाली दुकान पर ही यह सब कुछ मिल सकता है। जब बच्चों के पालक स्कूल द्वारा बताए गए ठिकाने पर सामान लेने पहुंचते हैं तो वहां पर पहले से तैयार दुकानदार मीठी कटार लेकर अभिभावक को हलाल करने की पूरी तैयारी कर चुका होता है। इस बात से अनजान अविभावक जब दुकान पर जाते हैं और दुकानदार से कहते हैं कि हमें इसमें से कुछ किताबें दे दो तो वह पूरा सेट देने की ही बाध्यता रखता है। इस पूरी सामग्री में कई ऐसी चीजें भी रहती है जो अनुपयोगी रहती हैं जैसे डिक्शनरी, एटलस, ड्राइंग बुक, वाटर कलर्स आदि जो जबरन दी जाती हैं यानि पहले से स्कूल की फीस के बोझ से दबा पालक बच्चे के भविष्य के लिए लुटने को मजबूर हो जाता है।
पता सबको है तो इंतेजार किस बात का..
ये कोई आज कल की बात नहीं है। बल्कि यह गोरखधंधा लंबे समय से चल आ रहा है। हर साल जाल बिछाया जाता है। खुले आम शिकार होता है। और जब लगभग सारे अविभावक लुट चुके होते है। तब दिखावे के नाम पर एक्टिव हुए अधिकारी सख्ती किये जाने के आदेशों के साथ खाना पूर्ति को अंजाम देने का प्रयास करते है। इसे आपसी सांठगांठ कहे या फिर अधिकारियों की उदासीनता.. की सब कुछ नज़रों के सामने होने के बाद भी किसी भी संस्थान पर कठोर कार्यवाही नहीं होती।
अप्रैल में ही लूट लो..जुलाई का क्या पता..
इधर परेशानी से बचने के लिए स्कूल प्रबंधन ने अपनी लूट के समय में फेरबदल कर लिया है। छोटी क्लास को टारगेट करते हुए रिजल्ट के बाद से ही प्रेशर बनाने की कहानी शुरू कर दी जाती है। अप्रैल में लगाई जाने वाली क्लासेस की आड़ में पहले ही किताबों के सेट से लेकर अन्य सामग्री खरीदने का दबाब बनाया जा रहा है। प्राप्त जानकारी के अनुसार आज दिनांक तक तो 60 से 70 फीसदी अविभावक इसका शिकार बन भी चुके है।
जुलाई से शुरू हो सकती है मुद्दे को भंजाने की कवायद
मामला गंभीर होने के साथ जनता से जुड़ा है। लिहाजा कुछ मौकापरस्त लोग इसे भंजाने की राह भी देख रहे है। सूत्र बताते है कि आने वाले माह में इस मुद्दे को लेकर राजनीतिक रोटियां सेंकने वाले लोग एक्टिव हो सकते है। जो आंदोलन और प्रदर्शन कर हर साल की तरह इस बार भी अपने हितैषी होने का ढिंढोरा पीटने वाले है। हो सकता है मामले को तूल पकड़ता देख कोई आधिकारिक सख्ती के आदेश भी पारित कर दिया जाए। इन सबके बीच लुटा हुआ अविभावक बस यही कयास लगाए अपनी जेब निहारता हुए सोचता है..
काश ये लोग समय से पहले जाग जाते तो काम से कम इस बार हम लूटने से बच जाते।
कई खलीफा शामिल है लूट के इस खेल में...
प्राप्त जानकारी के अनुसार शिक्षा के इस खुले व्यापार में पर्दे के पीछे कई बड़ी व्यवसायिक एवं राजनीतिक हस्तियां भी शामिल है। यही कारण है कि बेलगाम हुए निजी शिक्षण संस्थाओं पर लगाम लगाने हर कोई हाथ खड़े कर लेता है। बताया तो यह भी जाता है कि सारा खेल बाकायदा योजनाबद्ध तरीके के साथ ही खेला जाता है। जहां हर किसी की भूमिका के हिसाब से उसका नज़राना तय किया जाता है।वहीं इनके रसूख के चलते अक्सर प्रशासन को महज औपचारिकता की चाशनी में डूबी कार्यवाही कर जनता को खुश करने की कार्यवाही करनी पड़ती है।
इनका कहना है..
बच्चे के केजी 2 के रिजल्ट के बाद ही 3000 रुपयों का सेट जबरन स्कूल से थमाया जा रहा है। वहीं यह भी कहा जा रहा है कि बच्चे को नियमित स्कूल भेजिए वर्ना कोर्स आगे बढ़ जाएगा..
यामिनी गुप्ता (अविभावक)
यह स्कूलों की हर साल की आदत बन चुकी है। ज्यादा बात करने पर स्कूल प्रबंधन टीसी ले लेने की बात करता है। अब ऐसे में समस्या यह है कि हम बच्चोँ को पढ़ाएं या फिर लड़ने जाए।
अवधेश कोरी (अविभावक)
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