अपराध में सियासी तड़का.. क्या गिरफ्त को कमजोर करने.. हो तो नहीं रही साजिश
विकास की कलम / जबलपुर
कानून का पालन कराने के लिए पुलिस का सख्त रवैया भले ही जनता को नागवार गुजरता हो लेकिन हकीकत तो यह है कि अपराध के प्रति जन सामान्य के दिलों में खौफ पैदा करना बहुत ज्यादा जरूरी होता है दूसरे पहलू से देखा जाए तो यही खौफ एक आम इंसान को अपराध से तौबा करने की नसीहत भी देता है और समाज में जनता को भय मुक्त माहौल भी प्रदान करता है। लेकिन वर्तमान कि बयार में सियासी संरक्षण कानून का खुले आम मजाक उड़ाने पर उतारू है। आज गली का हर छुटभैया नेता पार्टी के नाम पर न केवल अपने गलत मंसूबे कामयाब करने में जुटा है बल्कि समय समय पर यह जिम्मेदारों पर धौस दिखाते हुए दबाब बनाने का भी काम करता है। वहीं इसके विपरीत वोट की लालच में अपनी राजनीतिक महत्वाकांछा की खादी पहने बड़े चहरे भी इन कुकुरमुत्तों को पोषण देते रहते है। नतीजतन ये स्वघोषित नेता इतने बेलगाम हो चले है कि गंभीर से गंभीर अपराध को करने से भी नहीं कतराते। और सबसे चिंता का विषय यह है कि कांड हो जाने के बाद गिरफ्त को कमजोर करने सियासी हथकंडे भी अपनाए जाने लगते है।
ताजा मामला मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले का है जहां संजीवनी नगर थाना क्षेत्र अंतर्गत एक तथाकथित नेता प्रियांश विश्वकर्मा के ऑफिस में बेहद भयानक गोली कांड हो जाता है। जिसमें ऑफिस में मौजूद एक महिला वैदिका ठाकुर गंभीर रूप से घायल हो जाती है। दोपहर में हुए इस गोली कांड को कई घंटों तक पचाने की जुगत भिड़ाई जाती है। घायल को अस्पताल ले जाने की जगह ऑफिस की सफाई करते हुए सबूत मिटाने की कोशिश की जाती है। सीसीटीवी का डीवीआर गायब किया जाता है। और मामला हांथ से निकलता देख आखिरकार देर शाम घायल वेदिका को एक निजी अस्पताल में दाखिल कराना पड़ता है।
नाटकीय तौर पर घटित हुए इस घटना क्रम में आरोपी खुद पीड़िता को अपनी स्कार्पियो से अस्पताल लाता है। लेकिन सियासी पहुंच के चलते वह अस्पताल से गायब भी हो जाता है। शुरुवाती दौर में इसे दुर्घटना का अमली जामा पहनाने की हर भरसक कोशिश की गई। लेकिन कुछ ही समय बाद पीड़िता वेदिका ठाकुर ने सारे क्लाइमेक्स से पर्दा उठाते हुए नायाब तहसीलदार के समक्ष यह बयान दे दिया कि उसे प्रियांश ने ही गोली मारी है। घायल वेदिका के बयान के बाद से ही सियासी गणित के सारे जोड़ घटाने धरे के धरे रह गए। और आखिरकार संबंधित राजनीतिक दल ने आरोपी के साथ हर तरह के संबंधों से पल्ला झाड़ते हुए किनारा कर लिया।
इधर शुरुवात से ही पुलिस प्रशासन आरोपी प्रियांश को खोजने का प्रयास कर रही है। लेकिन उन्हें कहीं भी उसकी खोज खबर नहीं मिल रही। बताया जा रहा है कि नरसिंहपुर के समीप नाकाबंदी से कुछ दूर उन्हें प्रियांश की स्कार्पियो मिली है। आशंका जताई जा रही है कि वह पकड़े जाने के डर से अपनी गाड़ी छोड़कर भागा होगा। हालांकि विभागीय सूत्रों से मिली जानकारी पर गौर किया जाए तो पुलिस पूरी सरगर्मी के साथ प्रियांश की पतासाजी में जुटी है। लेकिन गुजरते समय के साथ साथ इस केस को लेकर तरह तरह की चर्चाओं का माहौल गर्म होने लगा है।
मौजूदा हालातों की बात करें तो मामले को भंजाने के लिए विपक्ष भी पूरी हुंकार के साथ मैदान में कूद पड़ा है। घटना और अपराध में अपनी बेजोड़ दिलचस्पी दिखाते हुए संबंधित विपक्षी दल के आदमी को जल्द गिरफ्तार करने की बात की जा रही है। सम्भवतः यह मुद्दा आने वाले समय में बड़ा ट्रंप कार्ड साबित हो लिहाजा किसी भी कीमत में वे इसे हांथ से नहीं जाने देंगे।
जब कभी भी अपराध में सियासी संक्रमण का समावेश होता है तो हालात काफी पेचीदा हो जाते है।मामला सियासी होते ही पुलिस की मुश्किलें भी दोगुनी हो जाती है। संभवतः प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पुलिस पर काफी दबाब भी बनने लगता है। इन सबके बीच भी पूरी ततपरता से सारे हालातों का सामना करते हुए पुलिस अपने काम को बेहद संजीदगी से पूरा करती है। हालांकि अभी भी यह सपष्ट नहीं हुआ कि प्रियांश और वेदिका के बीच क्या संबंध है और प्रियांश ने वेदिका को आखिर किस कारण से गोली मारी। बहरहाल वेदिका की हालत में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है। और जल्द ही घटनाक्रम का सारा कारनामा सब के सामने आ जायेगा। अब जबकि यह पूरा मामला पॉलिटिकल प्रेशर से लबरेज हो चुका है। लिहाजा यह देखना काफी दिलचस्प होगा कि पुलिस कब कहाँ और किन हालातों में प्रियांश का गिरेबान पकड़कर उसे सलाखों के पीछे डालती है। और फिर उसे उसके कृत्य की कितनी मुकम्मल सजा मिलती है।
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