विकास की कलम / जबलपुर
अगर आप भी निर्देशक ओम राउत की फिल्म आदिपुरुष देखने का मन बना रहे हैं तो आप से अनुरोध है कि इस फिल्म के प्रति ज्यादा उम्मीदें लेकर ना जाएं और अगर आप अपने बच्चों को यह सोच कर सिनेमा घर ले जा रहे हैं कि आदि पुरुष देखकर वह महा ग्रंथ रामायण से कुछ सीख ले पाएंगे तो फिर आप से अनुरोध है कि अपने बच्चों को यह फिल्म दिखाने तो बिल्कुल भी ना ले जाएं क्योंकि इस फिल्म में जिस तरीके के संवाद भगवान हनुमान और इंद्रजीत के मुंह से निकलते हैं उसे सुनकर बच्चों के मन में गहरा असर पड़ सकता है।
पालने में ही दिख गए थे... पूत के पांव
रामायण की कहानी पर आधारित फिल्म आदिपुरुष की जब घोषणा की गई थी। तो देश भर की जनता ने उम्मीदों का पहाड़ खड़ा कर लिया था। निर्देशक ओम राउत ने अपने बड़बोले अंदाज में फ़िल्म को बेहद रोमांचक और मॉडर्न टेक्नोलॉजी से भरपूर बताया था। लोग मन ही मन विशालकाय सेट के साथ रावण के वैभव और राम के पराक्रम भरे दृष्यों के सपने बुनने लगे थे। लेकिन लंबे इन्तेजार के बाद जैसे ही आदिपुरुष' का फर्स्ट लुक जनता के बीच आया तो मानो आलोचनाओं की बाढ़ सी आ गई। लोगों ने इसके टीजर को ही नकार दिया था। यह पहला मौका था जब सुपरस्टार का नवनिर्मित चोगा ओढे प्रभास का इतना उपहास हुआ हो। हालांकि सोशल मीडिया में ट्रोल होने के बाद फ़िल्म निर्माता ने बड़े बदलाव की बात कर जनता को भरोसा दिलाया था कि फ़िल्म देखने के बाद जनता इसे कभी भूल नहीं पाएगी।मॉडर्न लुक के नए एक्सपेरिमेंट के साथ VFX के मामले में यह फिल्म एक विजुअल ट्रीट साबित होती है, मगर CJI की खामियां रह गई हैं। 2D में वीएफएक्स और सीजीआई का काम प्रभावशाली नहीं है। जबकि 3D में यह काफी दमदार बताई जा रही थी। लेकिन जैसे ही शुक्रवार को सिनेमा घरों में आदिपुरुष रिलीज की गई। फ़िल्म के 20 मिनट के बाद ही जनता ने माथा पीटना शुरू कर दिया।
फिल्म के संवाद से आहत हुई जनता..
शुरुआत से ही यह फिल्म एक कार्टून एनीमेशन फिल्म होने का एहसास कराने लगती है। काफी कन्फ्यूजिंग स्क्रीनप्ले के साथ स्टोरी भागती हुई नजर आई बीच-बीच में बेहद घटिया किस्म के ग्राफिक्स ने पहले से ही जनता का मूड खराब कर रखा था और रही सही कसर फिल्म के संवाद ने अपने आप ही पूरी कर दी। फिल्म के शुरुआती दौर में डायलॉग राइटर मनोज मुंतशिर के लिखे डायलॉग्स में जहां राघव और रावण के चरित्र समृद्ध हिंदी जैसे, 'जानकी में मेरे प्राण बसते हैं और मर्यादा मुझे अपने प्राणों से भी प्यारी है।' बोलते नजर आते हैं। लेकिन कुछ समय पश्चात ही सुवर्ता की सारी हदें पार करते हुए बेहद घटिया संवादों का प्रदर्शन शुरू कर दिया जाता है फिल्म के कुछ दृश्यों में संवाद इतने निचले स्तर के हैं कि उन्हें सुनने के बाद जनता को अफ़सोस होने लगा कि वह कौन सी फिल्म देखने आ गए। फिल्म के कुछ अंश में बजरंग का किरदार निभा रहे (देवदत्त) और इंद्रजीत के किरदार में (वत्सल सेठ) के बीच हुए संवाद 'तेरी बाप की जलेगी', 'बुआ का बगीचा समझा है क्या?' जैसे संवाद जनता कभी मांफ नहीं करेगी।
ओम राऊत के एक्सपेरिमेंट को जनता ने सिरे से नकारा
रामायण की कथा इस देश का बच्चा बच्चा मुंह जुबानी जानता है। जहां राम का नाम आते ही हर कोई अनायास ही इस नाम के आगे श्री लगा देता है इस बात से ही समझ जाना चाहिए कि रामायण और राम जी की लीला को लेकर देश की जनता कितनी संवेदनशील होगी।ऐसे में जब 'तानाजी' के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार पा चुके ओम राउत रामायण थीम बेस आदि पुरुष की घोषणा करते हैं। तो जनता का उम्मीद लगाकर बैठना लाज़मी हो जाता है। भले ही ओम राऊत ने नौजवान पीढ़ी के लिए इस महाकाव्य की गाथा को एक बड़े रुपहले पर्दे पर प्रदर्शित करने का साहस किया लेकिन उन्हें अपने एक्सपेरिमेंट के दौरान यह बात ध्यान रखनी चाहिए थी कि वह जिस महागाथा का नाटकीय मंचन करने जा रहे हैं हिंदुस्तान में उस महागाथा की एक बहुत ही मजबूत छवि लोगों के दिलों में राज करती है ऐसे में उन्हें यह याद रखना चाहिए था की भले ही स्क्रीनप्ले में आधुनिकता का समावेश कर दिया जाए लेकिन कहानी के मूलभूत सिद्धांत उसकी गरिमा उसका गौरव और जिन्हें जनता अपना आदर्श मानती है पूजती है उनके मुख से निकलने वाले संवाद काफी शोभनीय होने चाहिए थे।
जानिए कहां चूक गए ओम राउत
रावण की सोने की लंका और अपार वैभव देखने थिएटर पहुंची जनता को समय करारा झटका लगा जब उन्होंने रावण की काले भूरे रंग की लंका देखी। दरअसल निर्देशक ओम राउत ने इसे मॉडर्न लुक देने के लिए रावण की लंका को ग्रेइश कैसल लुक दिया है, जो रावण की सोने की चमचमाती लंका के विपरीत 'हैरी पॉटर' या 'गेम ऑफ थ्रोन्स' के किले की तरह दिखते हैं। फिल्म का तीन घंटे का रन टाइम तब और खलने लगता है, जब सेकंड हाफ में कहानी सिर्फ VFX से सजे राम-रावण के युद्ध में सिमटकर रह जाती है। हालांकि इंटरवल से पहले कहानी विजुअल इफेक्ट्स के साथ अच्छी लगती है। डायरेक्टर ने अहिल्या, मेघनाद वध जैसे रामायण के कई प्रसंगों को छोड़ दिया है। बाली और सुग्रीव को वानरों का विशुद्ध रूप दिया है, तो रावण के लुक, कॉस्ट्यूम और उसके शस्त्रों को कुछ ज्यादा ही मॉडर्नाइज कर दिया गया है। रावण को पुष्पक विमान की जगह एक पिशाच जैसे जीव की सवारी करते दिखाया गया है, उसके अस्त्र-शस्त्र 'गेम ऑफ थ्रोन्स' की याद दिलाते हैं।
संगीत के चयन में भी चूक गए राउत
संचित-अंकित बल्हारा का बैकग्राउंड स्कोर दमदार है, मगर अजय-अतुल के संगीत में गाने उतने कमाल के नहीं बन पाए। हां, 'जय सियाराम राजाराम' और 'तू है शीतल धारा' सुनने में अच्छे लगते हैं।
किरदारों ने बखूबी किया काम पर जरूरत से ज्यादा VFX ने बिगाड़ा खेल
एक्टिंग के मामले में प्रभास ने राघव को संयमित और मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में निभाया है। रावण के रूप में सैफ अली खान खूब जंचते हैं, मगर डिजिटिल टेक्नीक से उनकी कदकाठ को कुछ ज्यादा ही विशालकाय दिखाया गया है। जानकी के रूप में कृति सेनन परफेक्ट रहीं हैं। खूबसूरत लगने के साथ -साथ उन्होंने दमदार अभिनय किया है, मगर उन्हें उतना स्क्रीन स्पेस नहीं मिला पाया है। लक्ष्मण के रूप में सनी सिंह में वो तेजी नजर नहीं आती, जिसके लिए लक्ष्मण पहचाने जाते हैं। बजरंग के रूप में देवदत्त ने अपने चरित्र के साथ न्याय किया है। इंद्रजीत की भूमिका में वत्सल सेठ को अच्छा-खासा स्क्रीन स्पेस मिला है, जिसे उन्होंने खूबसूरती से निभाया है। मंदोदरी के किरदार में सोनल चौहान महज दो सीन में नजर आती हैं।
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आदिपुरुष के खिलाफ जनहित याचिका
प्रभास-अभिनीत आदिपुरुष ने अपनी रिलीज के दिन नए संकट को आमंत्रित किया क्योंकि हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की, जिसमें ओम राउत की फिल्म "रावण, भगवान राम, माता सीता" से संबंधित कुछ 'आपत्तिजनक दृश्यों' को हटाने की मांग की गई थी. याचिका में कहा गया है कि दृश्य रामायण में पाए जाने वाले धार्मिक चरित्रों के चित्रण के विपरीत हैं. "हिंदुओं का भगवान राम, सीता और हनुमान की छवि और किसी भी परिवर्तन/छेड़छाड़ की छवि के बारे में एक विशेष दृष्टिकोण है. याचिका में कहा गया है कि फिल्म निर्माताओं, निर्देशकों और अभिनेताओं द्वारा उनकी दिव्य छवि उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगी.
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