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सोशल मीडिया में फीकी सी रही मोदी की महफ़िल.. आखिर सिपाहियों को भगाने में किसकी है साजिश..

 



सोशल मीडिया में फीकी सी रही मोदी की महफ़िल..

आखिर सिपाहियों को भगाने में किसकी है साजिश..






विकास की कलम/संपादकीय

लो भैया जबलपुर में मोदी जी की सभा हो भी गई और कई 100 करोड़ की सौगात देकर मोदी जी शहर से चले भी गए..

लेकिन इस बार मोदी की महफिल और उसके नजारे बहुत फीके से नजर आए।

मोहल्ले के छोटे से भूमि पूजन से लेकर शहर के बहुचर्चित फ्लाई ओवर तक हर एक घटना को एक क्रांति की तरह पूरे शहर में फैला देने वाले असली श्रमजीवी पत्रकारों एवं सोशल मीडिया के असली सिपाहियों को इस बार मोदी की सभा में काफी मायूस देखा गया।

मायूसियत की असली वजह ऐन वक्त पर आया एक फरमान बताया जा रहा है जिसमें मोदी की सभा में केवल विशिष्ट बुद्धिजीवी श्रेणी में आने वाले पत्रकारों को ही अनुमति देने की बात कही गई थी। और इस बार मोदी के विकास कार्यों की गौरव गाथा को पूरे शहर में फैलाने का जिम्मा इन्हीं कुछ गिने-चुने लोगो के कंधे में डाल दिया गया।

गुपचुप हुई गॉसिप पर ध्यान दिया जाए तो बताया जा रहा है कि इस तरह का फरमान माननीय प्रधानमंत्री जी की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उन्हीं के विशेष सलाहकारों के माध्यम से जिला प्रशासन को दिया गया है।




हालांकि आपको बता दें कि 56 इंच की छाती रखने वाले माननीय प्रधानमंत्री जी दहाड़ते हुए पाकिस्तान तक जा सकते हैं तो फिर मध्य प्रदेश के एक छोटे से जिले के मुट्ठी भर पत्रकारों से उनकी सुरक्षा को खतरा होने वाली बात हाज़मे के परे जा रही है।


लेकिन सवाल यह है कि छोटे पत्रकारों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर छोटी-छोटी टुकड़ियों के माध्यम से मोदी सरकार के विकास कार्यों की गौरव गाथा को हर घर तक पहुंचाने वाले इन अ-वेतनिक सिपाहियों को नज़र अंदाज़ करने के पीछे आखिर कौन सा पुख्ता कारण हो सकता है। आखिर ऐसी क्या बात हो गई की हर जंग में अपनी अहम भूमिका दर्ज करने वाले इन सिपाहियों को इतना तुच्छ समझ लिया गया कि मोदी की सभा में इन्हें दरकिनार कर दिया गया।


सोशल मीडिया की ताकत और यू-ट्यूब एवं पोर्टल चैनलों की असली औकात क्या है। इस बात का अंदाजा यू लगा लीजिए की जब पुरानी सरकार की तूती बोला करती थी उस समय इन्हीं तुच्छ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों ने मोदी लहर का आगाज करते हुए देश में नरेंद्र भाई दामोदर दास मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठाला था। बड़े-बड़े चैनलों की कमर तोड़ देने वाला यह तुच्छ सा प्लेटफार्म वैसे तो बहुत वाहवाही लूटता है। लेकिन सेटिंगबाज मिजाजी पत्रकारों की नज़र में यह सिर्फ फर्जी ही है। वह बात अलग है कि आज इन्हीं फर्जियों की देखा सीखी बड़े-बड़े बैनर भी इसी राह में चल पड़े हैं। आलम यह है कि ताल ठोक कर कॉलर ऊंची करने वाला हर बड़ा पत्रकार कहीं ना कहीं पोर्टल और यू-ट्यूब के गलियारों में सदका करता नजर आने लगा है।



अब आप सोच रहे होंगे कि यदि वाकई में यूट्यूब और न्यूज़ पोर्टल में इतनी ताकत है तो विकास की कलम बार-बार इन्हें तुच्छ और फर्जी शब्द से संबोधित क्यों कर रही है।

इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण यह है कि मोदी जी की जिस सभा और शहर के लिए दी गई सौगात को पूरे शहर में जंगल की आग की तरह फैल जाना था। वह महज कुछ जगहों से होती हुई विलुप्त सी हो गई।

हम इस बात को भली-भांति जानते हैं कि प्रधानमंत्री जी की पीआर टीम ने अगर इस सभा से शहर के पत्रकारों को दरकिनार किया तो उसके पीछे जरूर ही कोई बहुत बड़ा कारण होगा।

लेकिन इस फैसले से कहीं ना कहीं एक अनछुआ सा तिरस्कार भी झलक रहा है जो जाने अनजाने में कहीं ना कहीं एक बड़ी साजिश की ओर भी इशारा कर रहा है।




आखिर सिर्फ किसी चुनिंदा शहर में ही ऐसे समय पे सिपाहियों का तिरस्कार करना जब हालात जंग के मुहाने पर खड़े हो। काफी पेचीदा लगता है।


खैर मामा के काम में बुलौआ और मोदी के काम में तिरस्कार ये बात अभी तक नारद वंशियों की खोपड़ी घुमा रही है।




हालांकि अगर यह बात हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री जी की सुरक्षा से जुड़ी हुई है। तो ऐसे कई तिरस्कारों को हम पूरी सहजता के साथ नजरअंदाज कर सभा स्थल के बाहर से ही अपना पत्रकारिता धर्म निभाते रहेंगे ।

लेकिन अगर इसके पीछे कोई और कारण है तो इस बात पर माननीय प्रधानमंत्री जी को बेहद खास ध्यान देना होगा कहीं ऐसा ना हो कि किसी की कुछ पल की काम चोरी आने वाले समय में काफी बड़े दुष्परिणाम खड़े करें।


इस पूरे गड़बड़झाले से दूर शहर की जनसंख्या का एक बड़ा तबका जिसने न तो अखबार पढा और न ही टीवी पर घंटो बिताए...

"वह रह रह कर यही सवाल कर रहा था कि आखिर मोदी जी ने कई सौ करोड़ दे कहाँ दिए।"


हो सकता है सभा में अतिविशिष्ट बुद्धिजीवियों ने सिर्फ अतिविशिष्ट बुद्धिजीवी जनता तक ही अपनी अतिविशिष्ट शैली के माध्यम से जानकारी साझा की हो। लेकिन उस बड़े तबके का क्या जो इन सारी जानकारी से अनजान है। जब उन्हें भी पता चला कि शहर के लगभग कई पत्रकारों को सभा से किनारे कर दिया गया तो वे भी ये बोले बिना रह न सके कि...


सोशल मीडिया में फीकी सी रही मोदी की महफ़िल..
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