स्ट्रैचर पर दम तोड़ती एमपी की स्वास्थ्य व्यवस्था...
पनागर सरकारी अस्पताल में पीढ़ित की मौत..
पीढ़ित का गुनाह सिर्फ इतना की वह रविवार को सरकारी अस्पताल पहुंचा...
विकास की कलम/जबलपुर
मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में स्वास्थ्य व्यवस्था पर एक और कालिख पोत ते हुए, एक पीड़ित में दम तोड़ दिया उसे गरीब का गुनाह सिर्फ इतना था कि वह रविवार की छुट्टी वाले दिन सरकारी अस्पताल के चंगुल में फंस गया। और फिर सरकारी रवैए की ऐसी आओ भगत हुई की, अस्पताल से घर वापस जाने की जगह उसे शमशान ले जाने की तैयारी करनी पड़ी। यह तमाचा है उन जिम्मेदारों के मुंह पर जो सरकारी अस्पतालों में सर्व सुविधा होने का दावा करते हुए बड़े-बड़े मंच में सम्मान प्राप्त करते हैं और जमीनी स्तर पर मरीज़ उपचार की जगह अंतिम संस्कार की डगर पर पहुंच जाता है।
मामला जबलपुर के पनागर तहसील से जुड़ा हुआ है जहां पर कालाडूमर के पास कंछेदी नाम के एक व्यक्ति का रविवार की सुबह एक्सीडेंट हो जाता है।जैसे तैसे राहगीरों ने उसे उठाकर पनागर सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में भर्ती कराया। पनागर अस्पताल ने औपचारिकता दिखाते हुए मरीज के साथ खाना पूर्ति की और उसकी चोटों को अति गंभीर बताते हुए मेडिकल अस्पताल के लिए रेफर कर दिया। इस तरह पनागर अस्पताल के जिम्मेदारों ने अपना पल्ला तो झाड़ लिया लेकिन 41 वर्षीय घायल वृद्ध को मौत के और करीब पहुंचा दिया। इधर मरीज का रेफर बनाने के बाद पनागर अस्पताल के चिकित्सा मेडिकल से आने वाली एंबुलेंस की राह तकने लगे। कई घंटे बीत जाने के बाद भी एंबुलेंस नहीं आई और मैरिज स्ट्रेचर पर पड़े पड़े सर्व सुविधायुक्त पनागर जिला अस्पताल के खोखले दावों पर तरस खाता रहा। उसे अंत तक उम्मीद थी कि शायद उसकी बदहाली पर किसी को तरस आ जाए और उसका उपचार कर उसे दोबारा उसके घर भिजवा दिया जाए।
लेकिन मामला रविवार की छुट्टी का था लिहाजा हफ्ते भर हाथ दर्ज की लापरवाही दिखाने वाला सरकारी विभाग आखिर छुट्टी के दिन कैसे मुस्तैदीह दिखा देता और हुआ वही जिसे डर था। मरीज ने एंबुलेंस की राह देखते देखते अपनी आखिरी सांस ली और सरकारी अस्पताल में उपलब्ध होने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं पर बड़ा सवालिया निशान लगाते हुए दुनिया को अलविदा कह दिया।
हालांकि इस पूरे मामले को लेकर पनागर जिला अस्पताल के डॉक्टर मरीज का प्राथमिक उपचार करने और मेडिकल में एंबुलेंस उपलब्ध कराने की बात कहते रहे लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि सरकारी अस्पताल के डॉक्टर अक्सर मरीज के साथ रेफर का खेल खेल कर उनकी जिंदगी दांव पर लगाते हैं। जानकारों की माने तो बेहद विषम परिस्थितियों पर ही मरीज को मेडिकल अस्पताल में रेफर किया जाता है लेकिन पुराने कुछ आंकड़े उठाकर देख जाए तो जिला अस्पताल के डॉक्टर अक्सर अपनी जिम्मेदारियां से मुंह चुराते हुए मरीज को बेवजह मेडिकल अस्पताल रेफर कर देते हैं ताकि उन्हें मुसीबत से निजात मिल सके और वह आराम से बैठकर अपनी दिहाड़ी पकाते रहे।