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क्या..? ये एप्पल भी..साहब खा गए है..

 क्या..? ये एप्पल भी..साहब खा गए है..



जबलपुर जिले में अस्पतालों के नाम पर होने वाले फर्जी वाड़े की बात अब किसी से भी छुपी नहीं है एक दो नहीं बल्कि दर्जनों ऐसे अस्पतालों को चोरी छुपे सेटिंग के साथ खोले जाने की अनुमति दे दी जिनके पास ना तो जरूरी कागज थे और ना ही सुरक्षा के कोई इंतजाम। हरी पत्ती की आड़ में सारे कागजों की खाना पूर्ति करते हुए कुछ जिम्मेदारों ने जबलपुर शहर में फर्जी अस्पतालों की फसल बो दी थी। हालांकि बीच में हालात कुछ ऐसे बने की साहब की सेटिंग चरमरा गई और ना चाह कर भी साहब को ही कार्यवाही का चाबुक चलाना पड़ा। सूत्र बताते हैं की कार्यवाही के बाद से ही साहब के कई व्यापारियों के साथ रिश्ते काफी खराब हो गए थे। चूंकि दोस्ती की परंपरा और व्यवहार को कायम रखना था लिहाजा साहब के दरबार के एक मंत्री ने बीच का रास्ता निकाला और पुराने विवादित माल को नए पैकेट में डालकर नए सिरे से जनता के सामने परोसने का आईडिया दे डाला। सूत्र बताते हैं कि यह आइडिया साहब को इतना पसंद आया की तत्काल ही इस पर अमल किया जाना शुरू हो गया। और एक बार फिर से जबलपुर शहर में नए-नए नाम के साथ कुछ संस्थान गुलजार हो गए। 

ध्यान रहे सिर्फ लिफाफा बदला है अंदर का माल नहीं। लिहाजा पुरानी करतूत करने में इन संस्थाओं ने जरा भी समय नहीं गंवाया । और अस्तित्व में आते ही अपना पुराना नेटवर्क एक्टिव करते हुए दुगनी ताकत से जनता का खून चूसने का काम शुरू कर दिया। वैसे तो शहर में ऐसे कई संस्थान है लेकिन मदन महल क्षेत्र के बेदी नगर में संचालित होने वाले एक विवादित अस्पताल के बारे में इन दोनों बड़ी आम चर्चा है कि नए नाम और रंग रूप के साथ एक बार फिर से वही पुरानी टीम ने अपना पुराना धंधा शुरू कर दिया है। और इस बार यह एप्पल न जाने कितने स्वस्थ लोगों को बीमार करके अपनी जेब भरेगा।

 बताया जा रहा है कि ऐसे संस्थानों में फर्जी तरीके से एक्सीडेंटल केशो का बड़े स्तर पर निपटारा कराया जा रहा है। जिसमें नीचे से लेकर ऊपर साहब की गद्दी तक हर किसी का हिस्सा फिक्स कर दिया गया है। इन संस्थाओं द्वारा बाकायदा दलालों का एक बड़ा नेटवर्क संचालित किया जाता है जो की एक्सीडेंट की फर्जी कागजों को बनाकर बीमा कंपनी से लाखों रुपए इलाज एवं क्षतिपूर्ति के रूप में कमा रहे हैं। दलालों की टीम में एंबुलेंस संचालक झोलाछाप डॉक्टर पैथोलॉजी और एक्सरे सेंटर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में फैले बेरोजगार युवा जो कि ऐसे व्यक्तियों को ढूंढते हैं जो किसी शारीरिक समस्या से पीड़ित हो या अन्य कारणों से दुर्घटनाग्रस्त हो गए हो ऐसे व्यक्तियों की झूठी एफआईआर दर्ज कराकर एक्सीडेंटल केस बनाते हैं और शासन एवं बीमा कंपनियों से भारी भरकम रकम वसूल करते हैं। अगर विभाग द्वारा उनके कागजातों की विधिवत जांच और इनके द्वारा उपचारित मरीजों की हिस्ट्री खंगाली जाए तो एक बड़े नेटवर्क का खुलासा हो सकता है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिरकार कार्यवाही करेगा कौन...?

शहर के पुराने अनुभवों को देखते हुए शहर की जनता खुले तौर पर कह रही है कि.. लगता है इस बार यह एप्पल भी सब ने खा लिया है..

यही कारण है कि साहब पुराने अनुभवों को भूलकर या फिर नजरअंदाज करते हुए फिर से इन संस्थाओं की मनमानी को कबूल कर रहे हैं।

लेकिन अपने पुराने नुकसान की भरपाई के लिए इस बार यह संस्थाएं दुगने जोश के साथ अपने कारनामों को अंजाम दे रही हैं। और जिस रफ्तार से यह संस्थाएं कम कर रही है जल्द ही साहब को अनपच की शिकायत हो सकती है।

शहर की विडंबना है कि... जब तक कोई बड़ा हादसा ना हो जाए। साहब की कुर्सी और हरी पत्ती का मोह छूटता ही नहीं। और साहब तो इतने न्याय प्रिय है कि बिना शिकायतकर्ता के अपनी कुर्सी से डोल ही नहीं सकते। सब को क्या पड़ी है कि वह किसी अस्पताल के दस्तावेज चेक करवाए या फिर उसे अस्पताल की गतिविधियों पर नजर रखें। यह काम सब का थोड़ी है...??  इसके लिए उन्होंने बाकायदा एक टीम बनाई है जो समय-समय पर व्यवहार को पूरा करने का काम कर देती है। वह बात अलग है कि अगर किसी दिन कोई बड़ा हादसा हो गया तो फिर एक अलग से जांच टीम बनाकर साहब द्वारा ऐसी कार्यवाही की जाएगी की जनता के सामने एक बड़ी नजीर पेश होगी। हो सकता है उसके बाद फिर से एक नए पैकेट में इस एप्पल को किसी और नाम से परोस दिया जाए। 

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