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लॉ स्टूडेंट एसोसिएशन की "ललकार" पर..विक्टोरिया का "पलटवार"



लॉ स्टूडेंट एसोसिएशन की "ललकार" पर..विक्टोरिया का "पलटवार"




विकास की कलम/जबलपुर 
बीते दिनों जिला अस्पताल विक्टोरिया में काफी हो हल्ले के साथ एक बेहद बड़े विवाद की स्थिति उस वक्त निर्मित हो गई। जब जिला अस्पताल विक्टोरिया में व्याप्त अव्यवस्थाओं और भर्राशाही के खिलाफ महाकौशल लॉ स्टूडेंट एसोसिएशन ने अपना विरोध दर्ज कराते हुए उग्र प्रदर्शन किया। इस दौरान अव्यवस्थाओं से नाराज लॉ स्टूडेंट एसोसिएशन के लोगों ने जिला अस्पताल के जिम्मेदार वरिष्ठ अधिकारियों के साथ तू तू मैं मैं करते हुए। उन्हें अपना रवैया सुधारने और जिला अस्पताल में पदस्थ चिकित्सकों पर लगाम कसने की नसीहत दे डाली। महाकौशल लॉ स्टूडेंट एसोसिएशन का आरोप है कि जिला अस्पताल में डॉक्टर अक्सर नदारत रहते हैं। और मरीजों को स्वास्थ्य सुविधाओं का पूरा लाभ नहीं मिल पाता। गरीब मरीज सुबह से शाम तक इंतजार की मार झेलता है और फिर थकहार कर अपने घर चला जाता है। इससे पहले भी अस्पताल में अव्यवस्थाओं को लेकर महाकौशल लॉ स्टूडेंट एसोसिएशन द्वारा कई बार शिकायत दर्ज कराते हुए अधिकारियों से चर्चा की लेकिन अधिकारियों ने इस और ध्यान न देते हुए मामले को नजरअंदाज कर दिया।


विरोध प्रदर्शन के दौरान बनी विवाद की स्थिति

बीते सोमवार को जब महाकौशल लॉ स्टूडेंट एसोसिएशन के लोग जिला अस्पताल में व्याप्त अवस्थाओं को लेकर अपना विरोध दर्ज करने के लिए मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के चेंबर के नीचे पहुंचे तो उसे दौरान महाकौशल लॉ स्टूडेंट एसोसिएशन के पदाधिकारी और जिला चिकित्सालय के वरिष्ठ डॉक्टरों के बीच तकरार की स्थिति बनने लगी। प्रत्यक्षदर्शियों की माने तो विरोध प्रदर्शन गाली गलौज में तब्दील होने लगा। और अव्यवस्थाओं से नाराज शिकायतकर्ताओं ने अपना पूरा गुस्सा मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, एवं उनकी चिकित्सा टीम पर उतार दिया। इस बात को लेकर जिला अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक काफी नाराज है। इस दौरान चिकित्सकों के व्यवहार में भी काफी उग्रता देखने को मिली। दोनों ही पक्ष अपने-अपने अहम को लेकर मोर्चा संभालते हुए नजर आए। इस दौरान प्रदर्शन कर्ताओं ने एक मटके में सीएमएचओ की तस्वीर लगाकर अपना विरोध प्रदर्शन करते हुए। जिला अस्पताल में पदस्थ चिकित्सकों को जमकर खरी खोटी सुनाई। यह बात जिला अस्पताल के चिकित्सकों को काफी नागवार गुजरी और उन्होंने विरोध प्रदर्शन के इस तरीके को निंदनीय कृत करार देते हुए। इस पूरे मामले को विरोध प्रदर्शन न बताकर दबाव की राजनीति करने का प्रारूप बता डाला।

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"ललकार" पर दिखा "पलटवार" का असर 

सोमवार को जिला अस्पताल में हुए प्रदर्शन को लेकर मंगलवार की सुबह से ही जिला अस्पताल में विरोध प्रदर्शन का साइड इफेक्ट नजर आने लगा। तड़की सुबह से ही जिला अस्पताल के डॉक्टरों ने अपने वरिष्ठ चिकित्सकों एवं पदाधिकारी के साथ हुई अभद्रता को लेकर अपनी आपत्ति दर्ज कराते हुए। अपने चेंबर में जाने से मना कर दिया। सूत्र बताते हैं कि जिला अस्पताल के चिकित्सकों ने रात में ही एक्शन का रिएक्शन प्लान बनाते हुए लड़की सुबह से कम बंद हड़ताल पर जाने का निर्णय कर लिया था। जब सुबह काफी देर तक जिला अस्पताल के चिकित्सक चिकित्सा व्यवस्था उपलब्ध कराने जिला अस्पताल प्रांगण पर नहीं पहुंचे तो, खुद संयुक्त संचालक स्वास्थ्य सेवाएं डॉक्टर संजय मिश्रा द्वारा मोर्चा संभालते हुए सभी चिकित्सकों को समझाइश दी। विरोध प्रदर्शन के तरीके से नाराज जिला अस्पताल के चिकित्सकों ने डॉक्टर संजय मिश्रा की बात मानते हुए चिकित्सा सेवा देना तो स्वीकार किया लेकिन उन्होंने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ फिर दर्ज करने की बात कर डाली।

सिविल सर्जन बोले व्यवस्थाएं दुरुस्त है , किसी के भी बहकावे में ना आए

मीडिया से चर्चा के दौरान सिविल सर्जन डॉक्टर मनीष मिश्रा ने जानकारी देते हुए बताया कि जबलपुर का जिला अस्पताल अपनी उच्च स्तरीय व्यवस्थाओं को लेकर एक बार नहीं बल्कि कई बार राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित हो चुका है। यह उसकी व्यवस्थाओं का ही नतीजा है कि ढाई लाख से भी ज्यादा मरीज एक पखवाड़े के दौरान स्वास्थ्य लाभ ले चुके हैं। वहीं कोरोना आपद काल के दौरान भी जिला अस्पताल के चिकित्सकों ने दिन-रात एक करते हुए पूरे शहर में बिना किसी भेदभाव के साथ निशुल्क चिकित्सा व्यवस्था उपलब्ध कराई। उन्होंने यह बात जरूर मानी की उनके पास आने वाले ओसतन मरीजों के हिसाब से चिकित्सकों की संख्या कम है लेकिन उन्होंने बताया कि जिला अस्पताल में आने वाले हर एक मरीज को गैरेंटेड उपचार उपलब्ध कराया जाता है। हो सकता है इस दौरान मरीज को थोड़ा सा इंतजार करना पड़े लेकिन उनका उद्देश्य सभी तक चिकित्सा उपचार व्यवस्था उपलब्ध कराना सर्वोपरि है।
सिविल सर्जन डॉक्टर मनीष मिश्रा ने आमजन से अपील करते हुए यह भी कहा है कि वह किसी भी प्रकार के बहकावे में ना आए । जिला अस्पताल विक्टोरिया में सभी व्यवस्थाएं दुरुस्त हैं एवं सभी को उचित स्वास्थ्य लाभ उपलब्ध कराया जा रहा है। यदि किसी मरीज को स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर कोई भी शिकायत हो तो वह सीधे उनसे संपर्क कर अपनी समस्या का निदान करवा सकता है।

 

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आप हड़ताल पर मत जाना साहब...मेरा बच्चा बहुत बीमार है..

बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन तो हुआ और उस दौरान हुई तकरार को लेकर जिला चिकित्सालय के चिकित्सकों ने अपने स्वाभिमान को लेकर काम बंद कर देने का निर्णय ले लिया। मंगलवार की सुबह से ही जिला अस्पताल प्रांगण में तमाम चिकित्सक तो आए लेकिन वह मरीज को देखने नहीं गए। और झुंड लगाकर अपना विरोध प्रदर्शन करने की रूपरेखा बनाने लगे। इस दौरान जिला अस्पताल प्रांगण में निशुल्क स्वास्थ्य सुविधाएं पा रहे मरीज को इस बात का अंदेशा हो चला था । की बीते दिन हुए प्रदर्शन कारियों और चिकित्सकों के तकरार के कारण हो सकता है डॉक्टर साहब आज मरीज को ना देखें। डॉक्टरों की भीड़ के आसपास मरीजों एवं उनके परिजनों की भीड़ भी इकट्ठी होने लगी। फुसफुसाते हुए शब्दों में मरीज और उनके परिजनों ने भी इस बात को सुन लिया कि डॉक्टर हड़ताल पर जाने वाले हैं।

घबराए मरीज और उनके परिजनों के एक समूह ने सिविल सर्जन डॉक्टर मनीष मिश्रा से मुलाकात करते हुए हाथ जोड़कर कहा...
साहब आप हड़ताल पर मत जाना हमें यहां बेहतर उपचार व्यवस्था मिल रही है। हम सारी व्यवस्थाओं से संतुष्ट हैं और अगर आप बड़े लोगों की लड़ाई में हमारे मरीज को कुछ हो जाता है तो हम कहीं के ना रहेंगे...

यह मार्मिक क्षण अपने आप में कुछ और ही हालत बयां कर रहा था। इसके बाद तत्काल ही सिविल सर्जन डॉक्टर मनीष मिश्रा ने अपने सहयोगी डॉ रत्नेश कुरारिया के साथ मिलकर संयुक्त संचालक स्वास्थ्य सेवाएं डॉक्टर संजय मिश्रा से बातचीत करते हुए तमाम चिकित्सकों को समझाइए दी और स्पष्ट रूप से कहा कि उन्हें किसी भी विरोध प्रदर्शनकारियों की बात पर ध्यान नहीं देना चाहिए उनका एकमात्र कर्तव्य गरीब जनता को समुचित स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराना है। इसके बाद सभी चिकित्सक अपने-अपने काम पर लौट गए और जिला अस्पताल में स्थिति सामान्य हो गई।

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अक्सर बूस्टर डोज का काम करता है.. विरोध प्रदर्शन..

मनुष्य एक सामाजिक जीव है जो एक व्यवस्था में रहता है और इस व्यवस्था को व्यवस्थित रखने के लिए अक्सर विरोध प्रदर्शन का सहारा लेना पड़ता है। विरोध प्रदर्शन दरअसल लोगों को उनके कर्तव्य बोध के प्रति जागृत करने का एक अहम उद्गार होता है। विज्ञान हमें बताता है कि हर क्रिया की एक प्रतिक्रिया होती है और उसे प्रतिक्रिया के परिणाम स्वरूप काफी बदलाव देखने को मिलते हैं। ठीक उसी तरह से विरोध प्रदर्शन भी अपनी जगह एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जानकारों की माने तो विरोध प्रदर्शन एक बूस्टर डोज की तरह होता है जो भले ही.. कुछ समय के लिए सही.. लेकिन जिम्मेदारों को जगाते हुए;व्यवस्थाओं को और भी दुरुस्त कर जाता है। यदि किसी व्यवस्था को लेकर विरोध प्रदर्शन ना हो तो उसे व्यवस्था में अफसर शाही की दीमक लग जाती है। और यदि व्यवस्था सरकारी हुई तो उसके संक्रमित होने का खतरा 100 परसेंट ज्यादा होता है। यही कारण है कि समय-समय पर विरोध प्रदर्शन होने से व्यवस्थाओं को बूस्टर डोज मिलती जाती है और वे संक्रमित होने से बचे रहते हैं। और यदि व्यवस्था का कोई हिस्सा पूर्ण रूप से संक्रमित हो चुका होता है तो विरोध प्रदर्शन के साइड इफेक्ट के कारण उसे व्यवस्था से पृथक कर दिया जाता है ताकि उसके संक्रमण से व्यवस्था प्रभावित न हो। आम बोलचाल में इसे ही टर्मिनेट या सस्पेंड कर दिया जाना कहते हैं।

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आज का सवाल..??
क्या गरीब की चारपाई पूरे गांव की जागीर होती है..

जबलपुर का जिला अस्पताल लंबे अरसे से विवाद की चादर ओढ़, न जाने कितने संगठनों के नारेबाजी की मार झेलता आ रहा है। गरीबों को चिकित्सा व्यवस्था उपलब्ध कराने वाला यह जिला अस्पताल "ब्रिटेन की महारानी" विक्टोरिया का नाम अपने सर पर लिए बैठा... हमेशा से ऐसे ही इतराता आ रहा है। हालांकि एनयुआस केस का सर्टिफिकेशन लेकर बैठा यह जिला अस्पताल, अपने अंदर तमाम उच्च स्तरीय स्वास्थ्य सुविधाएं संजोए हुए बैठा है। लेकिन किसी और एंगल से देखा जाए तो यहां व्यवस्थाओं के नाम पर केवल औपचारिकता ही निभाई जा रही है। क्योंकि यह सरकारी अस्पताल है लिहाजा यहां काम सरकारी प्रोटोकॉल के हिसाब से होता है लेकिन महज ₹10 की पर्ची कटा लेने के बाद मरीज अगर यह समझने लगे की अब उसे गोद में बैठाल कर उसके सारे रोगों का उपचार तत्काल ही कर दिया जाएगा । तो शायद इतनी उत्तम व्यवस्था फाइव स्टार अस्पतालों में भी, आज तक उपलब्ध नहीं हो पाई है। बात साफ है हजारों की संख्या में रोजाना विभिन्न बीमारियों के साथ आमद देने वाले मरीजों को संभालने के लिए जिला अस्पताल में चिकित्सकों की ओपीडी में लंबी लाइन लगी होती है।

लेकिन वो कहते है न की..गरीब की चारपाई..पूरे गांव की जागीर समझी जाती है। ठीक ऐसा ही हिसाब सरकारी संस्थानों का होता है। जहां हर किसी को स्वागत सत्कार के साथ ए- 1 व्यवस्था तो चाहिए। लेकिन इंतजार होने पर फूफा की तरह मुंह फुलाने से बाज भी नहीं आते। और फिर इस पूरे साइड इफेक्ट का खामियाजा एक बड़ा जरूरतमंद तबका उठाता है।



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